ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
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फ़िक्र फूली-फली नहीं होती,
तो हसीं शायरी नहीं होती।
ख़ास लोगों से ही है दिल मिलता,
सबसे तो दोस्ती नहीं होती।
हौसला हो अगर बुलंदी पर,
कोई मुश्किल बड़ी नहीं होती।
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तर्क मज़बूत उसके हैं इतने,
हमसे कुछ काट ही नहीं होती।
चंद लोगों के साफ़ मन होते,
तो यूँ बस्ती जली नहीं होती।
सब जतन कर लिए,मगर उनकी,
दूर नाराज़गी नहीं होती।
हद तो यह है कि बात अब उनसे,
ख़्वाब तक में कभी नहीं होती।
---©️ओंकार सिंह विवेक
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (24-01-2022 ) को 'वरना सारे तर्क और सारे फ़लसफ़े धरे रह जाएँगे' (चर्चा अंक 4320 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
जी यादव जी,हार्दिक आभार।
Deleteबहुत ही बेहतरीन खूबसूरत सृजन आदरणीय सर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteअतिशय आभार आपका
DeleteJude hmare sath apni kavita ko online profile bnake logo ke beech share kre
ReplyDeletePub Dials aur agr aap book publish krana chahte hai aaj hi hmare publishing consultant se baat krein Online Book Publishers