February 22, 2022

जीवन में फिर भी पहले-सा हास नहीं

ग़ज़ल---ओंकार सिंह विवेक
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सुख का है क्या साधन जो अब पास नहीं,
जीवन  मे  फिर भी  पहले-सा  हास नहीं।
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मुजरिम  भी   जब   उसमे  जाकर  बैठेंगे,
क्या संसद  का  होगा  फिर उपहास नहीं?
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कर  लेते   हैं   ख़ूब  यकीं  अफ़वाहों  पर,
लोगों  को  सच  पर  होता  विश्वास  नहीं।
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दरिया   को   जो   अपनी   ख़ुद्दारी   बेचे,
मेरे  होठों   पर  हरगिज़  वो  प्यास  नहीं।
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उठ ही आना था फिर उनकी महफ़िल से,
रंग  हमे  जब  उसका  आया  रास  नहीं।
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कोई  बदलता  है  दिन  मे   दस  पोशाकें,
पास किसी  के साबुत एक  लिबास नहीं।
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ध्यान-भजन-पूजा-अर्चन  हैं  व्यर्थ  सभी,
मन मे  जब तक  सच्चाई  का वास नहीं।
🌷         ---ओंकार सिंह विवेक



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