January 26, 2022

लग रहा है डर हमें उनकी इनायत देखकर

ग़ज़ल--ग़ज़ल-ग़ज़ल   बस यही एक जुनून है मुझे ।अपने
भावों को काव्य रूप में अभिव्यक्त करने के लिए मेरी पसंदीदा विधा यही है।यद्यपि रस परिवर्तन के लिए मैं अक्सर दोहे,मुक्तक,नवगीत और कुंडलिया आदि भी कह लेता हूँ पर सहज भावाभिव्यक्ति मैं ग़ज़ल विधा में ही कर पाता हूँ।आपका निरंतर प्रोत्साहन भी मिल रहा है।मैं इसके लिए सबका ह्रदय से आभारी हूँ।आप मेरे ब्लॉग पर आते हैं,चर्चा करते हैं और बहुमूल्य प्रतिक्रिया भी देते हैं जो मेरी सृजनात्मकता को संजीवनी प्रदान करता है।आपका प्यार यूँ ही मिलता रहे।
आज फिर से एक नई ग़ज़ल आप सब के बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं हेतु ----
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
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यक-ब-यक  अपने  लिए इतनी मुहब्बत देखकर,
लग  रहा  है  डर  हमें  उनकी  इनायत  देखकर।

एक-दो  की  बात  हो  तो  हम  बताएँ  भी  तुम्हें,
जाने  कितनो  के  डिगे  ईमान   दौलत  देखकर।

हुक्मरां  का  क्या अमल  है और है कैसा निज़ाम,
ख़ुद समझ लें आम जन की आप हालत देखकर।
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आप चाहे  कुछ भी कहिए ,हो नहीं सकता कभी,
जो न खाए  ख़ौफ़  झूठा,सच की ताक़त देखकर।

दरमियां  काँटों  के भी  खिलना  नहीं  जो छोड़ते,
सीख तो मिलती है उन फूलों की हिम्मत देखकर।

खेत भी होरी  का  गिरवी,काम  भी  मिलता नहीं,
आ  रहा मुँह को कलेजा  उस पे आफ़त देखकर।
  
धर्म   का   नश्शा   सुँघाकर   माँगते  हैं  वोट  वो,
कैसे  दिल तड़पे  न  ये  सस्ती सियासत देखकर।
             ---©️ ओंकार सिंह विवक



 

1 comment:

  1. Jude hmare sath apni kavita ko online profile bnake logo ke beech share kre
    Pub Dials aur agr aap book publish krana chahte hai aaj hi hmare publishing consultant se baat krein Online Book Publishers

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