💥दोहे:मकर संक्रांति पर💥
-–-ओंकार सिंह विवेक
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सूरज दादा चल दिए ,अब उत्तर की ओर,
शनैः-शनैः कम हो रहा,शीत लहर का ज़ोर।
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दिखलाकर सबको यहाँ, प्रतिदिन नए कमाल,
सर्दी रानी जा रहीं , ओढ़े अपनी शाल।
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शुद्ध भाव से कीजिए , भजन-साधना-ध्यान,
पर्व मकर संक्रांति का , देता है यह ज्ञान।
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समरसता है बाँटता , खिचड़ी का यह पर्व,
करें न क्यों संक्रांति पर, फिर हम इतना गर्व।
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जीवन में उत्साह का , हो सबके संचार,
कहता है संक्रांति का , यह पावन त्योहार।
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---–ओंकार सिंह विवेक
सर्वाधिकार सुरक्षित
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (15-01-2022) को चर्चा मंच "मकर संक्रान्ति-विविधताओं में एकता" (चर्चा अंक 4310) (चर्चा अंक-4307) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteपर्व की आपको भी शुभकामनाएँ
बहुत सुंदर दोहे।
ReplyDeleteआभार आदरणीय
Deleteबहुत ही खूबसूरत दोहे!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
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