जब कोई पसीने से तरबतर होकर अपने दोस्तों से इस बात की शिकायत करता है कि भाई आज तो हद ही हो गई सूरज तो जैसे
भट्टी में झोंकने पर ही आमादा है तो बाक़ी लोग भी उसके डायलॉग से सहमत होते हैं,कसमसाते हैं,मुस्कुराते हैं और फिर बात से बात निकलकर परेशानी के आलम में भी हँसने-मुस्कुराने का बहाना खोज लेते हैं।ऐसा करना माहौल को हल्का-फुल्का रखने के लिए ज़रूरी भी होता है।यदि गर्मी की शिकायत करने वाले साथी को दार्शनिक अंदाज़ में यह कहते हुए टोक दिया जाए कि भाई तुम यह क्या शिकायत लेकर बैठ गए गर्मी में तो ऐसा ही होता है तो संवाद ही टूट जाएगा और मौज-मस्ती तथा मनोरंजन का जो मौक़ा बना है वह भी हाथ से जाता रहेगा।
अतः हर चीज़ को धीर-गंभीर होकर दार्शनिकता के चश्मे से न देखा जाए और शिकवे-शिकायतों और चुहलबाज़ी तथा गप्पबाज़ी
का भी कभी-कभी आनंद लिया जाए।
मैं भी के आज के मौसम से शिकायत करते हुए अपने इस दोहे के साथ वाणी को विराम देता हूँ, नमस्कार🙏🙏
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