February 4, 2022

साहित्यकार स्मृतिशेष श्री हीरालाल "किरण"


नमस्कार मित्रो🙏🙏
आज रामपुर-उ0प्र0 के एक ऐसे साहित्यकार के संबंध में आपके साथ संस्मरण साझा करने का मन हो रहा है जो जीवनपर्यंत बहुत ही साधारण दशा में जीवन यापन करते हुए जनसरोकारों से जुड़ा भावना प्रधान साहित्य सृजन करते रहे।जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ रामपुर के  स्मृतिशेष साहित्यकार श्री हीरालाल "किरण"जी की।

         स्वर्गीय श्री हीरालाल किरण जी से मेरा पहला संपर्क वर्ष 1984 में हुआ।मेरी नियुक्ति उसी वर्ष प्रथमा बैंक, जो अब प्रथमा यू पी ग्रामीण बैंक के नाम से जाना जाता है, पीपल टोला मेस्टन गंज,रामपुर में हुई थी।उन्हीं दिनों मेरी कुछ प्रारम्भिक सामयिक रचनाएँ नगर के प्रतिष्ठित समाचार पत्र "रामपुर समाचार" में प्रकाशित हुई थीं।मेरी उन रचनाओं को पढ़कर मेरा पता पूछते हुए श्री किरण जी प्रथमा बैंक की पीपल टोला शाखा में आए और अपना परिचय देते हुए कहा कि मैं यहाँ आपकी शाखा के पीछे ही स्थित टैगोर शिशु निकेतन विद्यालय में शिक्षक हूँ।उन्होंने कहा कि रामपुर समाचार में प्रकाशित हुई आपकी रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं,भविष्य में आप एक अच्छे रचनाकार बनेंगे।फिर उन्होंने मुझे अपने द्वारा गठित और संचालित "गुंजन साहित्यिक मंच" के बारे में बताया तथा कहा कि आप हमारे यहाँ होने वाली काव्य गोष्ठियों में आया करें।उस समय मैं किरण जी से बहुत प्रभावित हुआ तथा उनका ह्रदय से आभार प्रकट किया।इसके बाद मैं "गुंजन मंच" की काव्य गोष्ठियों  में जाने लगा।किरण जी गुंजन की लगभग हर काव्य गोष्ठी की सूचना देने मेरे घर अथवा कार्यालय ज़रूर आते थे।अनेक बार मैं बैंकिंग कार्यों की अति व्यस्तता या अन्य कारणों के चलते गोष्ठियों में नहीं जा पाता था परंतु आदरणीय किरण जी ने अपनी ओर से कभी मुझे सूचना या निमंत्रण देने में कोई कोताही नहीं की।मैं उनके सौम्य-सरल व्यवहार और हिंदी साहित्य के प्रति समर्पण भाव से सदैव प्रभावित रहा।चेहरे पर सादगी और सौम्यता लिए हुए इकहरे बदन के श्री किरण जी साईकिल पर सदैव चुस्ती और फुर्ती के साथ शहर की गलियों में घूमकर साहित्यकारों को उत्साहित एवं प्रेरित करते हुए साहित्यिक आयोजनों की सूचना देने का काम निःस्वार्थ भाव से करते रहते थे।शहर के कई ऐसे रचनाकारों से मैं  परिचित हूँ जिनको प्रोत्साहित करने का कार्य किरण जी आजीवन करते रहे।
 श्री किरण जी के साहित्य में भले ही कुछ मूर्धन्य साहित्य मनीषी शिल्पगत त्रुटियां ढूँढ लें पर उनका सहज,सरल और स्वाभाविक सृजन भावना के स्तर पर हर आम आदमी के दिल को छूने वाला है।
 स्मृतिशेष किरण जी की विभिन्न रचनाओं के कुछ अंश यहाँ उदधृत कर रहा हूँ जिससे आपको उनके भावों की गहराई और अभिव्यक्ति की सरलता का अनुमान हो जाएगा--
 
  --मेरा क्या मैं तो जी लूँगा,ये खारे आँसू पी लूँगा।
     लेकिन अपनी बात कहो तुम,ये जीवन कैसे काटोगे।

--अपनी व्यथा न कहना मन रे,जग तो हँस रह जाएगा।
    आँसू की बरसात न करना,नीर व्यर्थ बह जाएगा।

---प्रीत मन की वह लहर हूँ,बस गया इसमें नगर है।
      पथ नए खुलते दिखे हैं,जुड़ गया सारा शहर है।

---दर्पण में जब-जब मैंने, मन में रख अंतर देखा।
      जो चित्र बने थे उर में,उनकी उभरी थी रेखा।
            ---स्मृतिशेष हीरालाल किरण

किरण जी की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी परंतु फिर भी साहित्य में अपनी गहन रुचि और समर्पण भाव के कारण साहित्यिक आयोजनों में यथाशक्ति आर्थिक योगदान अवश्य किया करते थे।उनकी बेटी गरिमा एक बहुत ही प्रतिभाशाली छात्रा रही।जब वह अध्ययनरत थी तो गोष्ठी/समारोह आदि में उसकी प्रतिभा और प्रगति के बारे में किरण जी से अक्सर ही चर्चा हुआ करती थी।मैंने उनकी होनहार बेटी की प्रतिभा से प्रभावित होकर अपनी बड़ी बेटी का नाम भी गरिमा रखा।बाद के दिनों में जब कभी उनसे मुलाक़ात होती थी तो मुझसे वह यह ज़रूर पूछते थे कि भाई!तुम्हारी गरिमा के क्या हाल चाल हैं,उसकी पढ़ाई-लिखाई कैसी चल रही है।उनकी  ये सब बातें याद करके जी भर आता है।
आज साहित्य जगत में अपने स्थान से मैं संतुष्ट हूँ।एक ग़ज़ल संग्रह "दर्द का एहसास" आ चुका है अक्सर मंचों पर काव्य पाठ को भी जाता हूँ और आजकल दूसरे ग़ज़ल संग्रह पर काम चल रहा है जो जल्द ही प्रतिक्रिया के लिए आपके संमुख होगा परन्तु मैं यह अवश्य कहना चाहूँगा कि आज साहित्य जगत में जो सम्मान मुझे हासिल है उसमें श्री किरण जी की प्रेरणा का भी बहुत बड़ा योगदान है।
ऐसे सहज और सरल ह्रदय इंसान तथा साहित्य को समर्पित रहे व्यक्तित्व की स्मृतियों को मैं ह्रदय की असीम गहराइयों से श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ🙏🙏🌷🌷🌷🌷
             ---ओंकार सिंह विवेक






     

4 comments:

  1. Replies
    1. हार्दिक आभार माहिर साहब

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  2. स्मृतिशेष किरण जी से मेरा परिचय भी 82 में ही हुआ था तथा वर्ष 86 तक निरंतर आना जाना, गोष्ठियां आयोजित करना लगा रहा, उन्हीं के साथ उन दिनों दिग्गज मुरादाबादी जी भी वहीं थे, गुंजन काव्य मंच मैंने भी ज्वाइन किया थाI

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    1. आदरणीय मुझे ख़ुशी है कि संस्मरण पढ़कर आपकी भी पुरानी यादें ताज़ा हुईं🙏🙏

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