मिसरा -- मुझको जमीं से लाग उन्हें आसमान से
शायर दाग देहलवी
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ग़ज़ल--©️ओंकार सिंह विवेक
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इंसां जो छेड़ करता रहा आसमान से,
डरते रहेंगे यूँ ही परिंदे उड़ान से।
कुछ हाल तो हो जाता है आँखों से भी बयां,
हर एक बात की नहीं जाती ज़ुबान से।
दुनिया को दर्स देता है जो मेल-जोल का,
रिश्ता हमारा है उसी हिन्दोस्तान से।
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सैलाब में घिरे रहे बस्ती के आम लोग,
उतरे न ख़ास लोग मदद को मचान से।
इच्छा रखें न फल की, सतत कर्म बस करें,
संदेश ये ही मिलता है 'गीता' के ज्ञान से।
भड़काके रात-दिन यूँ तअस्सुब की आग को,
खेला न जाए मुल्क के अम्न-ओ-अमान से।
मछली की आँख ख़्वाब में भेदी बहुत 'विवेक',
निकला न तीर सच में तो उनकी कमान से।
-- ©️ओंकार सिंह विवेक
चित्र--गूगल से साभार
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (09-02-2022) को चर्चा मंच "यह है स्वर्णिम देश हमारा" (चर्चा अंक-4336) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आदरणीय
Deleteवाह! बेहतरीन शायरी
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
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