February 7, 2022

आसमान से

नमस्कार मित्रो 🙏🙏
हज़रत दाग़ देहलवी साहब बहुत बड़े शायर गुज़रे हैं।उन्होंने
शायरी को जिस मुक़ाम तक पहुँचाया वो हम जैसे सुख़नवरों के लिए एक दर्स है।यदि हम उन जैसे महान शायरों के कलाम को पढ़कर थोड़ा-बहुत भी कुछ कहना सीख लें तो ज़िंदगी सँवर जाए।
अभी कुछ दिन पहले एक साहित्यिक ग्रुप में हज़रत दाग़ साहब की ग़ज़ल का एक मिसरा दिया गया था।उस ज़मीन में मैंने भी कुछ कोशिश की जो आप सब की प्रतिक्रिया के लिए हाज़िर कर रहा हूँ--

मिसरा  -- मुझको जमीं से लाग उन्हें आसमान से
                शायर दाग देहलवी
2    2 1      21      21   12    2 1  21  2

ग़ज़ल--©️ओंकार सिंह विवेक
©️
इंसां   जो   छेड़   करता  रहा  आसमान  से,
डरते   रहेंगे    यूँ    ही     परिंदे   उड़ान  से।

कुछ हाल  तो हो जाता है आँखों से भी बयां,
हर  एक  बात   की  नहीं  जाती  ज़ुबान  से।

दुनिया  को  दर्स  देता  है जो मेल-जोल  का,
रिश्ता   हमारा   है   उसी    हिन्दोस्तान   से।
©️
सैलाब  में   घिरे  रहे  बस्ती  के  आम  लोग,
उतरे  न  ख़ास  लोग   मदद  को  मचान से।    

इच्छा  रखें  न  फल की, सतत कर्म बस करें,
संदेश ये  ही  मिलता  है  'गीता' के  ज्ञान से।

भड़काके  रात-दिन यूँ तअस्सुब की आग को,
खेला  न जाए  मुल्क के अम्न-ओ-अमान से।

मछली की आँख ख़्वाब में भेदी बहुत 'विवेक',
निकला  न तीर सच  में  तो उनकी कमान से।
               -- ©️ओंकार सिंह विवेक

चित्र--गूगल से साभार

चित्र--गूगल से साभार

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (09-02-2022) को चर्चा मंच      "यह है स्वर्णिम देश हमारा"   (चर्चा अंक-4336)      पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

    ReplyDelete
  2. वाह! बेहतरीन शायरी

    ReplyDelete

Featured Post

आज एक सामयिक नवगीत !

सुप्रभात आदरणीय मित्रो 🌹 🌹 🙏🙏 धीरे-धीरे सर्दी ने अपने तेवर दिखाने प्रारंभ कर दिए हैं। मौसम के अनुसार चिंतन ने उड़ान भरी तो एक नवगीत का स...