कुंडलिया : चुनावी मौसम
--ओंकार सिंह विवेक
खाया जिस घर रात-दिन,नेता जी ने माल,
नहीं भा रही अब वहाँ, उनको रोटी-दाल।
उनको रोटी-दाल , बही नव चिंतन धारा,
छोड़ पुराने मित्र , तलाशा और सहारा।
कहते सत्य विवेक,नया फिर ठौर बनाया,
भूले उसको आज ,जहाँ वर्षों तक खाया।
---ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
चित्र : गूगल से साभार
चित्र : गूगल से साभार
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (17-01-2022 ) को 'आने वाला देश में, अब फिर से ऋतुराज' (चर्चा अंक 4312) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
शुक्रिया यादव जी
Deleteएकदम सही कहा आपने आदरणीय सर
ReplyDeleteवादे नए इरादे पुरानी ही है..
अतिशय आभार आपका
Deleteदलबदलुओं की यही फितरत होती है
ReplyDeleteजी🙏🙏
Deleteक्या बात है। बहुत ही बढ़िया ।
ReplyDeleteबेहद शुक्रिया
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