January 16, 2022

चुनावी मौसम पर कुंडलिया

कुंडलिया : चुनावी मौसम
           --ओंकार सिंह विवेक
खाया  जिस  घर  रात-दिन,नेता जी ने  माल,
नहीं  भा  रही  अब  वहाँ, उनको  रोटी-दाल।
उनको  रोटी-दाल , बही   नव   चिंतन  धारा,
छोड़   पुराने   मित्र , तलाशा   और   सहारा।
कहते  सत्य  विवेक,नया  फिर  ठौर  बनाया,
भूले  उसको  आज ,जहाँ  वर्षों  तक खाया।
          ---ओंकार सिंह विवेक
          (सर्वाधिकार सुरक्षित)
चित्र : गूगल से साभार
चित्र : गूगल से साभार

8 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (17-01-2022 ) को 'आने वाला देश में, अब फिर से ऋतुराज' (चर्चा अंक 4312) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. एकदम सही कहा आपने आदरणीय सर
    वादे नए इरादे पुरानी ही है..

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  3. दलबदलुओं की यही फितरत होती है

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  4. क्या बात है। बहुत ही बढ़िया ।

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