ग़ज़ल-- ©️ओंकार सिंह 'विवेक'
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मिला है ख़ुश्क दरिया देखने को,
मिलेगा और क्या-क्या देखने को।
किसी मुद्दे पे सब ही एकमत हों,
कहाँ मिलता है ऐसा देखने को।
तो गुजरेंगे अजूबे भी नज़र से,
अगर निकलोगे दुनिया देखने को।
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किसी के पास है अंबार धन का,
कोई तरसा है पैसा देखने को।
सुना आँधी को पेड़ों से ये कहते,
तरस जाओगे पत्ता देखने को।
बना था ज़ेहन में कुछ अक्स वन का,
मिला कुछ और नक़्शा देखने को।
नज़र दहलीज़ से कैसे हटा लूँ,
कहा है उसने रस्ता देखने को।
--- ©️ ओंकार सिंह 'विवेक'
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 02 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
हार्दिक आभार आपका🙏🙏
Deleteआदरणीय ओंकार सिंह विवेक जी, नमस्ते!👏! आपको परिवारसहित नववर्ष की असीम शुभकामनाएँ!
Deleteकिसी मुद्दे पे सब ही एकमत हों,
कहाँ मिलता है ऐसा देखने को।
बहुत सुंदर ग़ज़ल है। साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
आदरणीय आपको भी नव वर्ष मंगलमय हो🙏🙏
Deleteप्रोत्साहन प्रतिसाद हेतु आपका अतिशय आभार
बना था ज़ेहन में कुछ अक्स वन का,
ReplyDeleteमिला कुछ और नक़्शा देखने को।
नज़र दहलीज़ से कैसे हटा लूँ,
कहा है उसने रस्ता देखने को।
वाह ।।।। लाजवाब ग़ज़ल ।
हार्दिक आभार आपका
Deleteकिसी के पास है अंबार धन का,
ReplyDeleteकोई तरसा है पैसा देखने को।
बहुत ही सही और सटीक बात कही आपने!
लाजवाब.. .. !!
हार्दिक आभार मनीषा जी
Deleteबहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
ReplyDeleteकिसी मुद्दे पे सब ही एकमत हों,
कहाँ मिलता है ऐसा देखने को.. वाह!
आपको नववर्ष की हार्दिक बधाई एवं ढेरों शुभकामनाएँ।
सादर नमस्कार
हार्दिक आभार आदरणीया।
Deleteआपको भी नव वर्ष की बधाई
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteनववर्ष मंगलमय हो
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteनववर्ष मंगलमय हो
हार्दिक आभार।आपको भी नव वर्ष मंगलमय हो
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