ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
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हम कैसे ठीक आपका ये मशवरा कहें,
जो मुददआ नहीं है उसे मुददआ कहें।
मालूम है कि होगा हवाओं से सामना,
फिर किस लिए चराग़ इसे मसअला कहें।
इंसां को प्यास हो गई इंसां के ख़ून की,
वहशत नहीं कहें तो इसे और क्या कहें।
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है रहज़नों से उनका यहाँ राबिता-रसूख़,
तुम फिर भी कह रहे हो उन्हें रहनुमा कहें।
वो सुब्ह तक इधर थे मगर शाम को उधर,
ऐसे अमल को सोचिए कैसे वफ़ा कहें।
इंसानियत का दर्स ही जब सबका अस्ल है,
फिर क्यों किसी भी धर्म को आख़िर बुरा कहें।
मिलती है दाद भी उन्हें फिर सामिईन की,
शेरो-सुख़न में अपने जो अक्सर नया कहें।
----©️ओंकार सिंह विवेक
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 03 फ़रवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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शुक्रिया यादव जी
Deleteखूबसूरत ग़ज़ल । पुरस्कार हेतु बहुत बधाई ।
ReplyDeleteशुक्रगुज़ार हूँ आपका
DeleteJude hmare sath apni kavita ko online profile bnake logo ke beech share kre
ReplyDeletePub Dials aur agr aap book publish krana chahte hai aaj hi hmare publishing consultant se baat krein Online Book Publishers
Jude hmare sath apni kavita ko online profile bnake logo ke beech share kre
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