August 22, 2021
क्या बतलाएँ दिल को कैसा लगता है
August 1, 2021
हाँ, जीवन नश्वर होता है
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
©️
हाँ , जीवन नश्वर होता है,
मौत का फिर भी डर होता है।
शेर नहीं होते हफ़्तों तक,
ऐसा भी अक्सर होता है।
बारिश लगती है दुश्मन-सी ,
टूटा जब छप्पर होता है।
उनका लहजा ऐसा समझो ,
जैसे इक नश्तर होता है।
जो घर के आदाब चलेंगे,
दफ़्तर कोई घर होता है।
देख लियाअब हमने,क्या-क्या,
संसद के अंदर होता है।
-- ©️ ओंकार सिंह विवेक
July 25, 2021
गुलों में ताज़गी आए कहाँ से
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
दिनाँक- 24.07.2021
©️
चमन है रूबरू पैहम ख़िज़ाँ से,
गुलों में ताज़गी आए कहाँ से।
धनी समझे थे जिसको बात का हम,
लो वो भी फिर गया अपनी ज़ुबाँ से।
मज़ा आएगा थोड़ा अब सफ़र का,
हुआ है रास्ता मुश्किल यहॉं से।
कहीं बरसा नहीं दो बूँद पानी,
कहीं बरसी है आफ़त आसमाँ से।
हो जिससे और को तकलीफ़ कोई,
कहा जाए न ऐसा कुछ ज़ुबाँ से।
कभी खिड़की पे आती थी चिरैया,
सुना करता हूँ मैं यह बात माँ से।
---©️ ओंकार सिंह विवेक
July 18, 2021
सुना करता हूँ मैं यह बात माँ से
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
©️
यूँ ही थोड़ी गई वो गुलसिताँ से,
लड़ी है जंग फूलों ने ख़िज़ाँ से।
धनी समझे थे जिसको बात का हम,
लो वो भी फिर गया अपनी ज़ुबाँ से।
मज़ा आएगा थोड़ा अब सफ़र का,
हुआ है रास्ता मुश्किल यहॉं से।
कहीं बरसा नहीं दो बूँद पानी,
कहीं बरसी है आफ़त आसमाँ से।
हो जिससे और को तकलीफ़ कोई,
न ऐसा लफ़्ज़ इक निकले ज़ुबाँ से।
कभी खिड़की पे आती थी चिरैया,
सुना करता हूँ मैं यह बात माँ से।
---©️ ओंकार सिंह विवेक
July 16, 2021
तो गुज़रेगी क्या सोचिए रौशनी पर
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
©️
सभी फ़ख़्र करने लगें तीरगी पर,
तो गुज़रेगी क्या सोचिए रौशनी पर।
सर-ए-आम ईमान जब बिक रहे हों,
तो कैसे भरोसा करें हम किसी पर।
सुनाते रहे मंच से बस लतीफ़े,
न आए वो आख़िर तलक शायरी पर।
अलग दौर था वो,अलग था ज़माना,
सभी नाज़ करते थे जब दोस्ती पर।
न रिश्वत को पैसे, न कोई सिफ़ारिश,
रखेगा तुम्हें कौन फिर नौकरी पर।
किसी ने कभी उसकी पीड़ा न समझी,
सभी ज़ुल्म ढाते रहे बस नदी पर।
बहुत लोग थे यूँ तो पूजा-भवन में,
मगर ध्यान कितनों का था आरती पर?
---- ©️ ओंकार सिंह विवेक
July 15, 2021
स्मृतिशेष अटल जी की जयंती पर
July 12, 2021
राष्ट्रीय कवि गोष्ठी-संस्कार भारती वाराणसी
July 11, 2021
शहनाइयाँ अच्छी लगीं
July 6, 2021
मानवीय सरोकार
July 1, 2021
कच्चा घर नहीं होता
June 21, 2021
Yoga Day Special
June 20, 2021
फादर्स-डे स्पेशल
June 14, 2021
दो बोल प्यार के
ग़ज़ल---ओंकार सिंह विवेक
©️
दो बोल जिसने बोल दिए हँसके प्यार के,
हम उसके होके रह गए इस दिल को हार के।
ये नौजवान कैसे दिखाएँगे फिर हुनर,
अवसर ही जब न दोगे इन्हें रोज़गार के।
है और चंद रोज़ की महमान ये ख़िज़ाँ,
आएँगे जल्द लौटके मौसम बहार के।
'कोविड' के ख़ौफ़ में ही रहे वो भी मुब्तिला,
जो थे मरीज़ मौसमी खाँसी - बुख़ार के।
रहना ही है 'विवेक' अभी ये ख़ुमार तो,
आए हैं उनकी बज़्म में कुछ पल गुज़ार के।
©️ ---ओंकार सिंह विवेक
June 11, 2021
पुख़्ता तैयारी है
June 3, 2021
समीक्षा : एक दुष्कर कार्य
June 1, 2021
जब दिये ही नहीं जलाए हैं
May 27, 2021
May 21, 2021
अँधेरे से ही तो उजाला है
May 17, 2021
दोहे : गंगा मैया
May 8, 2021
May 6, 2021
April 26, 2021
April 24, 2021
गुलशन फिर मुस्काएगा
April 22, 2021
Positivity-Positivity And Positivity
April 13, 2021
सत्ता के गलियारों में
ग़ज़ल----ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
रोज़ ख़बर छप जाया करती अपनी भी अख़बारों में,
पैठ बना लेते जो शासन- सत्ता के गलियारों में।
दख़्ल हुआ है नभ में जब से इस दुनिया के लोगों का,
इक बेचैनी सी रहती है सूरज - चाँद -सितारों में।
फुटपाथों पर चलने वालों का भी थोड़ा ध्यान रहे,
बेशक आप चलें सड़कों पर लंबी - लंबी कारों में।
क्या बतलाऊँ उसने भी रंज-ओ-ग़म के उपहार दिए,
गिनती करता रहता था जिसकी अपने ग़मख़्वारों में।
दर्द बयाँ करती है वो अब मज़लूमों-मज़दूरों का,
क़ैद नहीं है आज ग़ज़ल ऊँचे महलों-दरबारों में।
भोली जनता भूल गई,थे जितने शिकवे और गिले,
ऐसा उलझाया नेता ने लोकलुभावन नारों में।
----ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
April 9, 2021
April 6, 2021
आओ टीका लगवाएँ : कोरोना को निबटाएँ
March 30, 2021
ठोकर खाने से
ग़ज़ल**ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
कौन भला रोकेगा उसको मंज़िल पाने से,
जिसका साहस जाग उठा हो ठोकर खाने से।
बात समझकर भी जो ढोंग करें नासमझी का,
होगा भी क्या ऐसे लोगों को समझाने से।
मत पूछो कितनी तस्कीन मिली है इस दिल को,
इक बेकस की ओर मदद का हाथ बढ़ाने से।
कैफ़े से मँगवाए चाऊमिन - पिज़्ज़ा - बर्गर ,
कैसे बेहतर हो सकते हैं घर के खाने से।
गीता के उपदेशों ने वो संशय दूर किया,
रोक रहा था जो अर्जुन को वाण चलाने से।
जो वो सोचे कितने पंछी बेघर कर डाले,
आँधी को फ़ुरसत ही कब है पेड़ गिराने से।
जब दिल से दिल का ही सच्चा मेल नहीं होता,
क्या हासिल है फिर लोगों के हाथ मिलाने से।
--ओंकार सिंह विवेक
सर्वाधिकार सुरक्षित
March 27, 2021
होली है भई होली है!
March 25, 2021
जनता तो बेचारी थी बेचारी है
ग़ज़ल***ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
🗯️
इसको लेकर ही उनको दुश्वारी है,
जनता में क्यों अब इतनी बेदारी है।
🗯️
तुम क्या जानो दर्द किराएदारों का,
यार तुम्हारा बँगला तो सरकारी है।
🗯️
कोई सुधार हुआ कब उसकी हालत में ,
जनता तो बेचारी थी , बेचारी है।
🗯️
शकुनि बिछाता है वो ही चौसर देखो,
आज महाभारत की फिर तैयारी है।
🗯️
नाम कमाएँगे ये ख़ूब सियासत में,
नस-नस में इनकी जितनी मक्कारी है।
🗯️
औरों-सा बनकर पहचान कहाँ होती,
अपने - से हैं तो पहचान हमारी है।
🗯️
----ओंकार सिंह विवेक
March 22, 2021
विराट कवि सम्मेलन और साहित्यकार सम्मान समारोह
March 17, 2021
भव्य कवि सम्मेलन शेरकोट, बिजनौर
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शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏 संगठन में ही शक्ति निहित होती है यह बात हम बाल्यकाल से ही एक नीति कथा के माध्यम से जानते-पढ़ते और सीखते आ रहे हैं...