ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
दिनाँक- 24.07.2021
©️
चमन है रूबरू पैहम ख़िज़ाँ से,
गुलों में ताज़गी आए कहाँ से।
धनी समझे थे जिसको बात का हम,
लो वो भी फिर गया अपनी ज़ुबाँ से।
मज़ा आएगा थोड़ा अब सफ़र का,
हुआ है रास्ता मुश्किल यहॉं से।
कहीं बरसा नहीं दो बूँद पानी,
कहीं बरसी है आफ़त आसमाँ से।
हो जिससे और को तकलीफ़ कोई,
कहा जाए न ऐसा कुछ ज़ुबाँ से।
कभी खिड़की पे आती थी चिरैया,
सुना करता हूँ मैं यह बात माँ से।
---©️ ओंकार सिंह विवेक
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (26-07-2021 ) को 'अपनी कमजोरी को किस्मत ठहराने वाले सुन!' (चर्चा अंक 4137) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
धनी समझे थे जिसको बात का हम,
ReplyDeleteलो वो भी फिर गया अपनी ज़ुबाँ से।
मज़ा आएगा थोड़ा अब सफ़र का,
हुआ है रास्ता मुश्किल यहॉं से।
बहुत ही उम्दा रचना!
वैश्या पर आधारित हमारा नया अलेख एक बार जरूर देखें🙏
बहुत ही बढ़िया कहा ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
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