June 14, 2021

दो बोल प्यार के

ग़ज़ल---ओंकार सिंह विवेक

©️


दो  बोल  जिसने  बोल  दिए  हँसके  प्यार के,
हम उसके होके रह गए इस दिल को हार के।

ये    नौजवान   कैसे   दिखाएँगे   फिर   हुनर,
अवसर   ही  जब  न  दोगे  इन्हें  रोज़गार के।

है   और   चंद  रोज़  की  महमान  ये  ख़िज़ाँ,
आएँगे   जल्द   लौटके   मौसम   बहार   के।

'कोविड'  के ख़ौफ़ में ही रहे वो भी मुब्तिला,
जो  थे  मरीज़  मौसमी  खाँसी - बुख़ार  के।

रहना  ही   है  'विवेक'  अभी  ये  ख़ुमार  तो,
आए  हैं  उनकी बज़्म में कुछ पल गुज़ार के।
©️ ---ओंकार सिंह विवेक

2 comments:

  1. ये नौजवान कैसे दिखाएँगे फिर हुनर,
    अवसर ही जब न दोगे इन्हें रोज़गार के।
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब सृजन।

    ReplyDelete
  2. ये नौजवान कैसे दिखाएँगे फिर हुनर,
    अवसर ही जब न दोगे इन्हें रोज़गार के।
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब सृजन।

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