July 11, 2021

शहनाइयाँ अच्छी लगीं


ग़ज़ल---ओंकार सिंह विवेक
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फ़ाइलातुन    फ़ाइलातुन    फ़ाइलातुन    फ़ाइलुन

मौसमे - बरसात     की    तैयारियाँ   अच्छी   लगीं,
ख़ुश्क फ़सलों को घुमड़ती  बदलियाँ अच्छी लगीं।

ख़ुश   हुए  बस  दूसरों  की  ख़ामियों  को  देखकर,
कब  भला  उनको किसी की ख़ूबियाँ अच्छी लगीं।

पेट    कोई   दान    के   पकवान    से   भरता   रहा,
और  महनत  की  किसी  को  रोटियाँ अच्छी लगीं।

और  भी  जलने  का  उसमें  हौसला कुछ बढ़ गया,
दीप को इन  आँधियों  की  धमकियाँ  अच्छी लगीं।

हम   पड़ोसी    से   हमेशा    मेल    के    हामी   रहे,
कब  हमें  सरहद  पे  चलती  गोलियाँ अच्छी लगीं।

दुख  हुआ  तो  रुख़सती का हमको बेटी की,मगर-
फिर  भी  घर  में  गूँजती  शहनाइयाँ  अच्छी लगीं।
                                     ---–ओंकार सिंह विवेक
             सर्वाधिकार सुरक्षित

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