ग़ज़ल**ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
कौन भला रोकेगा उसको मंज़िल पाने से,
जिसका साहस जाग उठा हो ठोकर खाने से।
बात समझकर भी जो ढोंग करें नासमझी का,
होगा भी क्या ऐसे लोगों को समझाने से।
मत पूछो कितनी तस्कीन मिली है इस दिल को,
इक बेकस की ओर मदद का हाथ बढ़ाने से।
कैफ़े से मँगवाए चाऊमिन - पिज़्ज़ा - बर्गर ,
कैसे बेहतर हो सकते हैं घर के खाने से।
गीता के उपदेशों ने वो संशय दूर किया,
रोक रहा था जो अर्जुन को वाण चलाने से।
जो वो सोचे कितने पंछी बेघर कर डाले,
आँधी को फ़ुरसत ही कब है पेड़ गिराने से।
जब दिल से दिल का ही सच्चा मेल नहीं होता,
क्या हासिल है फिर लोगों के हाथ मिलाने से।
--ओंकार सिंह विवेक
सर्वाधिकार सुरक्षित
बहुत सुन्दर ग़ज़ल।
ReplyDeleteअन्तर्राष्ट्रीय मूर्ख दिवस की बधाई हो।
Sundar
ReplyDeleteआभार
Delete