March 30, 2021

ठोकर खाने से

ग़ज़ल**ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710

कौन   भला   रोकेगा   उसको  मंज़िल  पाने  से,
जिसका  साहस  जाग  उठा हो ठोकर खाने से।

बात  समझकर भी  जो  ढोंग करें नासमझी का,
होगा  भी   क्या   ऐसे  लोगों   को  समझाने  से।

मत पूछो कितनी तस्कीन मिली है इस दिल को,
इक  बेकस  की  ओर  मदद  का हाथ बढ़ाने से।

कैफ़े   से   मँगवाए  चाऊमिन - पिज़्ज़ा - बर्गर ,
कैसे  बेहतर  हो   सकते  हैं  घर   के   खाने  से।

गीता  के  उपदेशों    ने   वो   संशय   दूर  किया,
रोक  रहा  था   जो  अर्जुन  को वाण चलाने से।

जो   वो   सोचे   कितने   पंछी  बेघर  कर  डाले,
आँधी  को  फ़ुरसत  ही  कब  है  पेड़  गिराने से।

जब दिल से  दिल का ही सच्चा मेल नहीं होता,
क्या  हासिल है  फिर लोगों के हाथ मिलाने से।
                                 --ओंकार सिंह विवेक

सर्वाधिकार सुरक्षित

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर ग़ज़ल।
    अन्तर्राष्ट्रीय मूर्ख दिवस की बधाई हो।

    ReplyDelete

Featured Post

आज एक सामयिक नवगीत !

सुप्रभात आदरणीय मित्रो 🌹 🌹 🙏🙏 धीरे-धीरे सर्दी ने अपने तेवर दिखाने प्रारंभ कर दिए हैं। मौसम के अनुसार चिंतन ने उड़ान भरी तो एक नवगीत का स...