ग़ज़ल***ओंकार सिंह विवेक
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इसको लेकर ही उनको दुश्वारी है,
जनता में क्यों अब इतनी बेदारी है।
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तुम क्या जानो दर्द किराएदारों का,
यार तुम्हारा बँगला तो सरकारी है।
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कोई सुधार हुआ कब उसकी हालत में ,
जनता तो बेचारी थी , बेचारी है।
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शकुनि बिछाता है वो ही चौसर देखो,
आज महाभारत की फिर तैयारी है।
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नाम कमाएँगे ये ख़ूब सियासत में,
नस-नस में इनकी जितनी मक्कारी है।
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औरों-सा बनकर पहचान कहाँ होती,
अपने - से हैं तो पहचान हमारी है।
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----ओंकार सिंह विवेक
March 25, 2021
जनता तो बेचारी थी बेचारी है
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सार्थक और उम्दा ग़ज़ल।
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