March 25, 2021

जनता तो बेचारी थी बेचारी है

ग़ज़ल***ओंकार सिंह विवेक
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इसको  लेकर   ही   उनको   दुश्वारी   है,
जनता  में  क्यों  अब  इतनी  बेदारी  है।
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तुम   क्या  जानो   दर्द  किराएदारों  का,
यार   तुम्हारा   बँगला  तो  सरकारी  है।
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कोई  सुधार  हुआ कब उसकी हालत में ,
जनता   तो    बेचारी    थी ,  बेचारी   है।
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शकुनि  बिछाता   है  वो ही चौसर देखो,
आज  महाभारत   की  फिर  तैयारी  है।
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  नाम   कमाएँगे   ये  ख़ूब   सियासत  में,
  नस-नस में इनकी जितनी मक्कारी है।
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  औरों-सा  बनकर  पहचान  कहाँ  होती,
  अपने - से   हैं   तो   पहचान  हमारी है।
  🗯️
                 ----ओंकार सिंह विवेक
   

 

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