ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
©️
सभी फ़ख़्र करने लगें तीरगी पर,
तो गुज़रेगी क्या सोचिए रौशनी पर।
सर-ए-आम ईमान जब बिक रहे हों,
तो कैसे भरोसा करें हम किसी पर।
सुनाते रहे मंच से बस लतीफ़े,
न आए वो आख़िर तलक शायरी पर।
अलग दौर था वो,अलग था ज़माना,
सभी नाज़ करते थे जब दोस्ती पर।
न रिश्वत को पैसे, न कोई सिफ़ारिश,
रखेगा तुम्हें कौन फिर नौकरी पर।
किसी ने कभी उसकी पीड़ा न समझी,
सभी ज़ुल्म ढाते रहे बस नदी पर।
बहुत लोग थे यूँ तो पूजा-भवन में,
मगर ध्यान कितनों का था आरती पर?
---- ©️ ओंकार सिंह विवेक
No comments:
Post a Comment