आज पिता-दिवस पर पिता श्री
को समर्पित एक ग़ज़ल
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---- ओंकार सिंह विवेक
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मफ़ऊ लु मफ़ाईलु मफ़ाईलु फ़ऊलुन
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मेरी सभी ख़ुशियों का हैं आधार पिता जी,
और माँ के भी जीवन का हैं शृंगार पिता जी।
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सप्ताह में हैं सातों दिवस काम पे जाते,
जानें नहीं क्या होता है इतवार पिता जी।
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हालाँकि ज़ियादा नहीं कुछ आय के साधन,
फिर भी चला ही लेते हैं परिवार पिता जी।
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ख़ैरात किसी की भी गवारा नहीं करते,
है फ़ख़्र मुझे , हैं बड़े ख़ुद्दार पिता जी।
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दुख अपना बताते नहीं ,पर सबका हमेशा,
ग़म बाँटने को रहते हैं तैयार पिता जी।
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दुनिया बड़ी ज़ालिम है , सजग हर घड़ी रहना,
समझाते हैं मुझको यही हर बार पिता जी।
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ये आपकी ही सीख का है मुझ पे असर,जो-
विपदा से नहीं मानता मैं हार पिता जी।
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पीटो मुझे या चाहे कभी कान मरोड़ो,
हर बात का है आपको अधिकार पिता जी।
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सर से न उठे मेरे कभी आप का साया,
मिलता रहे बस यूँ ही सदा प्यार पिता जी।
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©️ ओंकार सिंह विवेक
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