July 6, 2021

मानवीय सरोकार

दोस्तो काफ़ी दिन बाद आपसे फिर मुख़ातिब हूँ अपनी
मानवीय सरोकारों से जुड़ी एक ग़ज़ल लेकर--
 ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
©️ 
ये  आदमी  ने   यहाँ   कैसा  ज़ुल्म  ढाया  है,
तमाम  मछलियों  को  रेत  पर  ले  आया है।

कुचल  दिया   है   उन्हें  हौसले  के  बूते  पर,
जो  मुश्किलात  ने  जीवन  में  सर उठाया है,

सुना  रहा  है  वो  हमको  फ़क़त  लतीफ़े  ही,
अभी  तलक  भी  कोई  शेर  कब सुनाया है।

करें   न  शुक्र  अदा  क्यों   भला  दरख़्तों का,
इन्हीं   के   साए  ने   तो  धूप  से  बचाया   है।

है  कौन  हमसे अधिक और ख़ुशनसीब भला,
"तुम्हें   ख़ुदा    ने    हमारे    लिए   बनाया   है।

'विवेक' रब  की  इनायत-करम है ये मुझ पर,
जो सर पे आज तलक भी, पिता का साया है।
             ----    ©️   ओंकार सिंह विवेक



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