June 1, 2021

जब दिये ही नहीं जलाए हैं

नमस्कार मित्रो🙏🏻🙏🏻
सोचा काफ़ी दिन हो गए ,चलो साहित्यिक अभिव्यक्ति को  लेकर
कुछ बात की जाए।
यों तो आस-पास घटित हो रही तमाम घटनाओं और मन में चल रहे विचारों को लेकर एक साहित्यकार की प्रबल इच्छा रहती है कि वह उन भावों को अभिव्यक्ति दे।कुछ लोग /साहित्यकार अपनी रुचि और कौशल के अनुसार उन विचारों को कहानी ,लेख या निबंध के रूप में अभिव्यक्त करते हैं तो कुछ लोग काव्य रूप में।विचारों की अभिव्यक्ति साहित्य की किसी भी विधा में की जा सकती है परंतु उस विधा के शिल्प /व्याकरण विधान की पूरी जानकारी के साथ यदि हम कथ्य-तथ्य-भाव -शब्द चयन और संयोजन का पूरा ध्यान रखकर सृजन करेंगे तो निश्चित रूप से ऐसा सृजन लोगों के ऊपर गहरा और स्थायी प्रभाव छोड़ने में कामयाब होता है।
इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखकर सामाजिक विसंगतियों,विषमताओं और विरोधाभासों को लेकर मैंने एक ताज़ा ग़ज़ल कही है।पढ़कर
आप अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएँगे, ऐसी आशा है।।  
          ,🙏🏻🙏🌷🌷ओंकार सिंह विवेक


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