ग़ज़ल***ओंकार सिंह विवेक
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क्या बतलाएँ दिल को कैसा लगता है,
बदला-सा जब उनका लहजा लगता है।
रोज़ पुलाव पकाओ आप ख़यालों के,
इसमे कोई पाई - पैसा लगता है।
मजबूरी है बेघर की, वरना किसको-
फुटपाथों पर सोना अच्छा लगता है।
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तरही मिसरे पर इतनी आसानी से,
तुम ही बतलाओ क्या मिसरा लगता है।
आज किसी ने की है शान में गुस्ताख़ी,
मूड हुज़ूर का उखड़ा-उखड़ा लगता है।
चहरे पर मायूसी , आँखों मे दरिया,
तू भी मुझ-सा वक़्त का मारा लगता है।
बाल भले ही पक जाएँ उसके,लेकिन-
माँ - बापू को बेटा बच्चा लगता है।
----©️ओंकार सिंह विवेक
Bahut sundar
ReplyDeleteAabhar
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