दोहे : गंगा माई
**********
----©️ ओंकार सिंह विवेक
💥
जटा खोलकर रुद्र ने , छोड़ी जिसकी धार,
नमन करें उस गंग को , आओ बारंबार।
💥
भूप सगर के पुत्र सब , दिए अंततः तार,
कैसे भूलें हम भला , सुरसरि का उपकार।
💥
यों तो नदियों का यहाँ , बिछा हुआ है जाल,
पर गंगा माँ - सी हमें , मिलती नहीं मिसाल।
💥
मातु - सदृश भी पूजता , मैली करता धार,
गंगा - सॅंग तेरा मनुज , यह कैसा व्यवहार।
💥
दिन-प्रतिदिन दूषित करे , मानव उसकी धार,
पर फिर भी आशा रखे , गंगा देगी तार।
💥
आज धरा पर देखकर , गंगा का संत्रास,
शिव जी भी कैलाश पर , होंगे बहुत उदास।
💥
सच्चे मन से प्रण करें , हम सब बारंबार,
नहीं करेंगे अब मलिन , देवनदी की धार।
💥
चला-चलाकर नित्यप्रति, अधुनातन अभियान,
स्वच्छ करेंगे गंग को , मन में लें हम ठान।
💥
No comments:
Post a Comment