May 17, 2021

दोहे : गंगा मैया

दोहे : गंगा माई
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     ----©️ ओंकार सिंह विवेक
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जटा   खोलकर  रुद्र   ने , छोड़ी  जिसकी  धार,
नमन   करें   उस   गंग   को ,  आओ   बारंबार।
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भूप   सगर   के   पुत्र   सब , दिए  अंततः   तार,
कैसे   भूलें   हम  भला ,  सुरसरि  का  उपकार।
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यों  तो  नदियों  का  यहाँ ,  बिछा  हुआ है जाल,
पर  गंगा  माँ - सी  हमें , मिलती  नहीं  मिसाल।
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मातु - सदृश   भी   पूजता , मैली   करता  धार,
गंगा - सॅंग   तेरा   मनुज , यह  कैसा  व्यवहार।
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दिन-प्रतिदिन  दूषित  करे , मानव उसकी धार,
पर  फिर   भी   आशा   रखे , गंगा   देगी  तार।
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आज   धरा   पर    देखकर , गंगा   का  संत्रास,
शिव जी  भी  कैलाश  पर , होंगे  बहुत  उदास।
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सच्चे  मन   से   प्रण  करें ,  हम   सब  बारंबार,
नहीं   करेंगे   अब  मलिन ,  देवनदी  की  धार।
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चला-चलाकर नित्यप्रति, अधुनातन अभियान,
स्वच्छ   करेंगे  गंग  को , मन  में  लें  हम  ठान।
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                        -----©️ ओंकार सिंह विवेक

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