August 1, 2021

हाँ, जीवन नश्वर होता है

ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
©️ 
हाँ , जीवन   नश्वर   होता   है,
मौत का फिर भी डर होता है।

शेर   नहीं   होते  हफ़्तों   तक,
ऐसा  भी    अक्सर   होता  है।

बारिश  लगती  है  दुश्मन-सी ,
टूटा    जब    छप्पर   होता  है।

उनका  लहजा  ऐसा   समझो ,
जैसे    इक   नश्तर   होता   है।

जो    घर   के   आदाब   चलेंगे,
दफ़्तर    कोई    घर   होता   है।

देख लियाअब हमने,क्या-क्या,
संसद    के   अंदर     होता   है।
--   ©️  ओंकार सिंह विवेक





15 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (02-08-2021 ) को भारत की बेटी पी.वी.सिंधु ने बैडमिंटन (महिला वर्ग ) में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा। (चर्चा अंक 4144) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. यादव जी हार्दिक आभार

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  2. वाह ! बेहतरीन ग़ज़ल, घर से लेकर संसद और जीवन की नश्वरता सभी का ज़िक्र, बहुत खूब!

    ReplyDelete
  3. हृदय स्पर्शी भाव

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  4. हृदय स्पर्शी भाव

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  5. अति सुन्दर भाव सृजन ।

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  6. बहुत ही शानदार, उम्दा सृजन।

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