April 13, 2021

सत्ता के गलियारों में

ग़ज़ल----ओंकार सिंह विवेक
   मोबाइल 9897214710

रोज़ ख़बर छप जाया करती अपनी भी अख़बारों में,
पैठ   बना   लेते  जो  शासन- सत्ता  के गलियारों  में।

दख़्ल हुआ है नभ में जब से इस दुनिया के लोगों का,
इक  बेचैनी  सी  रहती  है  सूरज - चाँद -सितारों  में।

फुटपाथों  पर  चलने  वालों  का  भी  थोड़ा ध्यान रहे,
बेशक  आप  चलें  सड़कों  पर  लंबी - लंबी कारों में।

क्या बतलाऊँ उसने भी रंज-ओ-ग़म के उपहार दिए,
गिनती करता रहता था जिसकी अपने ग़मख़्वारों में।

दर्द  बयाँ  करती  है  वो  अब  मज़लूमों-मज़दूरों  का,
क़ैद  नहीं  है  आज  ग़ज़ल  ऊँचे  महलों-दरबारों  में।

भोली  जनता  भूल  गई,थे जितने शिकवे और गिले,
ऐसा   उलझाया   नेता   ने   लोकलुभावन   नारों  में।
                                        ----ओंकार सिंह विवेक

           (सर्वाधिकार सुरक्षित)


7 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (14-04-2021) को  ""नवसम्वतसर आपका, करे अमंगल दूर"  (चर्चा अंक 4036)  पर भी होगी। 
    --   
    मित्रों! चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं भी नहीं हो रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है। 
    --
    भारतीय नववर्ष, बैसाखी और अम्बेदकर जयन्ती की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --  

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  2. बढ़े कोरोना बढ़ते - बढ़ते
    दिल्ली के बाॅर्डर पर जाय,
    जितने भी नेता किसान हैं
    सबको हाॅस्पिटल ले जाय...

    हो सकती पूरी ये आस ,
    आम होय चाहे ख़ास
    कोविड का यकसां संत्रास।
    बेहद की प्रासंगिक रचना धारदार तंज लिए रचनात्मकता के संग साथ ,व्यंग्य वही सार्थक, जो कुछ करने को उकसाये ,विशाल भाई चर्चित हो जाय
    हाहाकार मचे चहुँ ओर
    तब हम फिर टीवी पर आयँ,
    कहें भाइयों - बहनों आओ
    हम फिर से एकजुट हो जायँ...

    आज रात को आठ बजे सब
    अपनी - अपनी छत पर आय,
    दो गज दूर हो मास्क लगाकर
    अबकी माथा पीटा जाय...

    पाक - बांग्लादेश - श्रीलंका
    इनको तो दें फ्री वैक्सीन,
    ताकि ये एक सुर में बोलें
    भारत दोस्त है - दुश्मन चीन...

    हँसी - हँसी में बात कही ये
    लेकिन बात बड़ी ग॔भीर,
    काँटे से काँटा निकले है
    ज़हर से जाये ज़हर की पीर...

    कहते हैं 'चर्चित' कि जागो
    ओ माय ह्वाइट दाढ़ी मैन,
    छोड़ इलेक्शन हिस्ट्री सोचो
    कम आॅन डू इट यू कैन...

    - विशाल चर्चित
    veerusa.blogspot.com
    कट्टरपन्थी मत बनो, मन को करो उदार।
    केवल हिन्दू वर्ष क्यों, इसको रहे पुकार।।
    --बाधाएँ सब दूर हों, आपस में हो मेल।
    मन के उपवन में सदा, बढ़े प्रेम की बेल।।
    --
    एक मंच पर बैठकर, करो विचार-विमर्श।
    अपने प्यारे देश का, कैसे हो उत्कर्ष।।
    --
    कोरोना से मुक्त हो, अपना प्यारा देश।
    सारे ही संसार में, बने विमल परिवेश।।
    सदाशयता सार्थकता धनात्मक सोच की परवाज़ हैं शस्त्री जी के दोहे
    सार्थक ग़ज़ल कही विवेक ओंकार ने
    दर्द बयाँ करती है वो अब मज़लूमों-मज़दूरों का,
    क़ैद नहीं है आज ग़ज़ल ऊँचे महलों-दरबारों में।
    फुटपाथों पर चलने वालों का भी थोड़ा ध्यान रहे,
    बेशक आप चलें सड़कों पर लंबी - लंबी कारों में।

    ReplyDelete
  3. बढ़े कोरोना बढ़ते - बढ़ते
    दिल्ली के बाॅर्डर पर जाय,
    जितने भी नेता किसान हैं
    सबको हाॅस्पिटल ले जाय...

    हो सकती पूरी ये आस ,
    आम होय चाहे ख़ास
    कोविड का यकसां संत्रास।
    बेहद की प्रासंगिक रचना धारदार तंज लिए रचनात्मकता के संग साथ ,व्यंग्य वही सार्थक, जो कुछ करने को उकसाये ,विशाल भाई चर्चित हो जाय
    हाहाकार मचे चहुँ ओर
    तब हम फिर टीवी पर आयँ,
    कहें भाइयों - बहनों आओ
    हम फिर से एकजुट हो जायँ...

    आज रात को आठ बजे सब
    अपनी - अपनी छत पर आय,
    दो गज दूर हो मास्क लगाकर
    अबकी माथा पीटा जाय...

    पाक - बांग्लादेश - श्रीलंका
    इनको तो दें फ्री वैक्सीन,
    ताकि ये एक सुर में बोलें
    भारत दोस्त है - दुश्मन चीन...

    हँसी - हँसी में बात कही ये
    लेकिन बात बड़ी ग॔भीर,
    काँटे से काँटा निकले है
    ज़हर से जाये ज़हर की पीर...

    कहते हैं 'चर्चित' कि जागो
    ओ माय ह्वाइट दाढ़ी मैन,
    छोड़ इलेक्शन हिस्ट्री सोचो
    कम आॅन डू इट यू कैन...

    - विशाल चर्चित
    veerusa.blogspot.com
    कट्टरपन्थी मत बनो, मन को करो उदार।
    केवल हिन्दू वर्ष क्यों, इसको रहे पुकार।।
    --बाधाएँ सब दूर हों, आपस में हो मेल।
    मन के उपवन में सदा, बढ़े प्रेम की बेल।।
    --
    एक मंच पर बैठकर, करो विचार-विमर्श।
    अपने प्यारे देश का, कैसे हो उत्कर्ष।।
    --
    कोरोना से मुक्त हो, अपना प्यारा देश।
    सारे ही संसार में, बने विमल परिवेश।।
    सदाशयता सार्थकता धनात्मक सोच की परवाज़ हैं शस्त्री जी के दोहे
    सार्थक ग़ज़ल कही विवेक ओंकार ने
    दर्द बयाँ करती है वो अब मज़लूमों-मज़दूरों का,
    क़ैद नहीं है आज ग़ज़ल ऊँचे महलों-दरबारों में।
    फुटपाथों पर चलने वालों का भी थोड़ा ध्यान रहे,
    बेशक आप चलें सड़कों पर लंबी - लंबी कारों में।

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  4. सुंदर प्रस्तुति

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  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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  6. बेहतरीन प्रस्तुति।

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