March 31, 2022
मोदी-योगी
March 25, 2022
हाँ, यह सच है
March 23, 2022
पुस्तक समीक्षा : "वहाँ पर गीत उग आए"
March 21, 2022
पानी रे पानी!!!!!!विश्व जल दिवस पर
March 18, 2022
होली के जाते-जाते
March 17, 2022
अपनी तहज़ीब ही भुला बैठे
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
©️
दोस्तों को जो आज़मा बैठे,
अपनी ही मुश्किलें बढ़ा बैठे।
कब सज़ा होगी उन अमीरों को,
हक़ ग़रीबों का जो दबा बैठे।
आपको कैसे हुक्मरानी दें,
आप तो साख ही गँवा बैठे।
©️
यार हमने तो दिल-लगी की थी,
आप दिल से उसे लगा बैठे।
क्या हुआ दौर-ए- नौ के बच्चों को,
अपनी तहज़ीब ही भुला बैठे।
वज़्न ही कुछ न दें जो औरों को,
ऐसे लोगों में कोई क्या बैठे।
कितने ही पंछियों का डेरा था,
आप जिस पेड़ को गिरा बैठे।
--- ©️ ओंकार सिंह विवेक
March 16, 2022
होली के अवसर पर पल्लव काव्य मंच की गोष्ठी
March 13, 2022
होली है--होली है--होली है
March 11, 2022
राजनीति तब और अब
March 10, 2022
ख़ुशी भी ज़िंदगानी दे रही है
आप वोटों की गिनती के रुझान और परिणाम देखिए और एक ताज़ा ग़ज़ल का आनंद भी लीजिए--
March 8, 2022
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष
March 5, 2022
लोकतंत्र और चुनाव
March 4, 2022
जो ठीक है वह ठीक है
March 3, 2022
विरोधाभासों,असंगतियों और विसंगतियों में घिरा आदमी और एक आस
March 2, 2022
रूस-यूक्रेन युद्ध : दिल बहुत दुखी है
March 1, 2022
खेतों की जो हरियाली है----
February 24, 2022
मदमाता फागुन
February 22, 2022
जीवन में फिर भी पहले-सा हास नहीं
February 20, 2022
निर्धन की क्या दीवाली है
February 17, 2022
सिन्फ़-ए-नाज़ुक
February 11, 2022
काश!ऐसा न हो
February 10, 2022
पानी रे पानी !!!!!(विश्व जल दिवस विशेष)
February 8, 2022
अब बहुत हुआ ऑनलाइन
February 7, 2022
आसमान से
मिसरा -- मुझको जमीं से लाग उन्हें आसमान से
शायर दाग देहलवी
2 2 1 21 21 12 2 1 21 2
ग़ज़ल--©️ओंकार सिंह विवेक
©️
इंसां जो छेड़ करता रहा आसमान से,
डरते रहेंगे यूँ ही परिंदे उड़ान से।
कुछ हाल तो हो जाता है आँखों से भी बयां,
हर एक बात की नहीं जाती ज़ुबान से।
दुनिया को दर्स देता है जो मेल-जोल का,
रिश्ता हमारा है उसी हिन्दोस्तान से।
©️
सैलाब में घिरे रहे बस्ती के आम लोग,
उतरे न ख़ास लोग मदद को मचान से।
इच्छा रखें न फल की, सतत कर्म बस करें,
संदेश ये ही मिलता है 'गीता' के ज्ञान से।
भड़काके रात-दिन यूँ तअस्सुब की आग को,
खेला न जाए मुल्क के अम्न-ओ-अमान से।
मछली की आँख ख़्वाब में भेदी बहुत 'विवेक',
निकला न तीर सच में तो उनकी कमान से।
-- ©️ओंकार सिंह विवेक
चित्र--गूगल से साभार
February 6, 2022
हे!ऋतुराज वसंत जी बहुत-बहुत आभार
February 4, 2022
साहित्यकार स्मृतिशेष श्री हीरालाल "किरण"
February 1, 2022
जो मुददआ नहीं है उसे -----
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
©️
हम कैसे ठीक आपका ये मशवरा कहें,
जो मुददआ नहीं है उसे मुददआ कहें।
मालूम है कि होगा हवाओं से सामना,
फिर किस लिए चराग़ इसे मसअला कहें।
इंसां को प्यास हो गई इंसां के ख़ून की,
वहशत नहीं कहें तो इसे और क्या कहें।
©️
है रहज़नों से उनका यहाँ राबिता-रसूख़,
तुम फिर भी कह रहे हो उन्हें रहनुमा कहें।
वो सुब्ह तक इधर थे मगर शाम को उधर,
ऐसे अमल को सोचिए कैसे वफ़ा कहें।
इंसानियत का दर्स ही जब सबका अस्ल है,
फिर क्यों किसी भी धर्म को आख़िर बुरा कहें।
मिलती है दाद भी उन्हें फिर सामिईन की,
शेरो-सुख़न में अपने जो अक्सर नया कहें।
----©️ओंकार सिंह विवेक
January 31, 2022
संविधान का मान
Featured Post
उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की सातवीं काव्य गोष्ठी संपन्न
फेंकते हैं रोटियों को लोग कूड़ेदान में ***************************** यह सर्वविदित है कि सृजनात्मक साहित्य पुरातन ...
-
(प्रथमा यू पी ग्रामीण बैंक सेवानिवृत्त कर्मचारी कल्याण समिति के अध्यक्ष श्री अनिल कुमार तोमर जी एवं महासचिव श्री इरफ़ान आलम जी) मित्रो संग...
-
बहुुुत कम लोग ऐसे होते हैैं जिनको अपनी रुचि के अनुुुसार जॉब मिलता है।अक्सर देेखने में आता है कि लोगो को अपनी रुचि से मेल न खाते...
-
शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏 संगठन में ही शक्ति निहित होती है यह बात हम बाल्यकाल से ही एक नीति कथा के माध्यम से जानते-पढ़ते और सीखते आ रहे हैं...