March 11, 2022

राजनीति तब और अब

हम सुनते और पढ़ते आए हैं कि एक ज़माना था जब राजनीति जनसेवा का माध्यम हुआ करती थी।घर के लोग अपने परिवार के किसी सदस्य को उसकी क्षमता और रुचि को देखते हुए राजनीति में इस उद्देश्य से भेजते थे कि वह अपने संघर्ष और सदप्रयासों से शासन-सत्ता का हिस्सा बनकर देश और समाज की सेवा के दायित्व का निःस्वार्थ भाव से निर्वहन करेगा।घर और परिवार को चलाने के लिए उन साधनों और संसाधनों को ही पर्याप्त माना जाता था जो परिवार को पहले से उपलब्ध रहे हों।राजनीति में लोग विशुद्ध जनसेवा के भाव से जाते थे उसमें रोज़गार की तलाश कदापि नहीं करते थे।
आज स्थितियाँ बिल्कुल इसके विपरीत हैं। अब राजनीति एक व्यापार बन चुकी है।इस युग में अधिकांश व्यक्ति राजनीति में जाते ही इस उद्देश्य से हैं कि वे किसी तरह इस क्षेत्र में प्रवेश भर पा लें फिर तो अगली कई पीढ़ियों के पालन पोषण का प्रबंध हो ही जाएगा।जब आदमी इस मानसिकता के साथ राजनीति में पदार्पण करेगा और उसका परिवार भी उससे यही अपेक्षा रखेगा तो राजनीति में मूल्यों,आदर्शों और सिद्धांतों की क्या दशा होगी यह भली प्रकार समझा जा सकता है।
आजकल हर दिन ,हर घंटे राजनीतिज्ञों का दल बदलना,अमर्यादित बयान देना,कदाचार करना और कुर्सी पाने के लिए अपने ज़मीर को बेचना आम बात हो गई है।राजनीति में हुए इस नैतिक क्षरण ने प्रजातंत्र और राजनीति का मज़ाक़ बना कर रख दिया है।हाँ यह बात ठीक है कि पहले के ज़माने में भी राजनीति में थोड़ा-बहुत मूल्यों से विचलन नज़र आता था लेकिन राजनीतिज्ञ इस हद तक भ्रष्ट और उसूलों से बग़ावत करने वाले नहीं होते थे जो स्थिति आज है।आज राजनीति में  आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को दबंग और चुनाव जिताऊ माना जाता है और विभिन्न राजनैतिक दल उनको खुलकर टिकट बाँटते हैं।इस दौर में जो जितना छली और बली है उतना ही  राजनीति में प्रभावशाली साबित होता है।जब राजनीति में ऐसा नकारात्मक और मानवता के विपरीत आचरण एक योग्यता समझा जाएगा तो मूल्यों पर आधारित राजनीति की कल्पना करना ही व्यर्थ होगा।
राजनीति को स्वच्छ और मूल्यों पर आधारित तभी किया जा सकता है जब राजनीतिज्ञों/विधायकों और सांसदों आदि के लिए भी न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता निर्धारित की जाए, हर पार्टी दाग़ी लोगों को टिकिट देने से बचे,जनता ऐसे उम्मीदवारों का बॉयकॉट करने का साहस करे।ईमानदार और उच्च शिक्षित लोग राजनीति में आने की पहल करें,राजनीति में परिवारवाद को हतोत्साहित किया जाए,विधायकों और सांसदों की अधिकतम आयु सीमा का भी निर्धारण किया जाए आदि आदि----।
इस युग में राजनीति भयानक संक्रमण और अवमूल्यन के दौर से गुज़र रही है। ज़रूरत है कि हर नागरिक इसके स्वास्थ्य की चिंता करे और अपना-अपना दायित्व समझते हुए इसे संक्रमण मुक्त करने में सहयोग प्रदान करे।

चित्र--गूगल से साभार

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