March 23, 2022

पुस्तक समीक्षा : "वहाँ पर गीत उग आए"

          पुस्तक समीक्षा
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पुस्तक - गीत संग्रह  "वहाँ पर गीत उग आये"
गीतकार- डॉ0 शिवशंकर यजुर्वेदी
समीक्षक - ओंकार सिंह विवेक

साहित्य साधना एवं उसमें भी गीत की साधना, निश्चित रूप से आसान कार्य नहीं है।गीत की अस्मिता को बनाए रखकर अपने काव्य धर्म का सही अर्थों में निर्वहन करना बहुत दुरूह कार्य है परंतु प्रस्तुत काव्य संग्रह में कवि ने अपनी सक्षम लेखनी से सुकोमल अनुभूतियों को गीत के माध्यम से बहुत ही उत्कृष्ट व मनमोहक रूप में प्रस्तुत किया है।
श्री शिवशंकर यजुर्वेदी ने अपने गीत संग्रह "वहाँ पर गीत उग आए" की रचना से पूर्व विद्या की देवी माँ शारदे की वंदना की है और माँ शारदे ने कवि की वंदना स्वीकार भी की है जिसके प्रतिफल के रूप में श्री यजुर्वेदी जी की लेखनी का एक और सफल प्रयास "वहाँ पर गीत उग आए" गीत संग्रह के रूप में हमारे सामने है।काव्य संग्रह के शीर्षक गीत की दो पंक्तियाँ देखें--

              मिला सम्मान से जो कुछ,सहेजा जानकर अतिशय,
              डिगा  पाए न  हमको, इस  जगत के रंग भड़कीले।
              
उदधृत पंक्तियों में कवि के परम् संतोषी होने का भाव प्रकट होता है।पंक्तियों में अंतर्निहित भावों से स्पष्ट है कि कवि नैतिकता एवं सद्चरित्रता का प्रबल पक्षधर है।कवि ने अपनी रचनाओं में  शृंगार, सामाजिक सरोकार, प्रकृति  एवं मानव जीवन के अन्य तमाम पहलुओं पर गहन दृष्टि डाली है।समाज में विद्यमान विभिन्न विसंगतियों का चित्रण करने के साथ साथ रचनाकार ने अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए उनका समाधान करने का भी गीतों के माध्यम से सार्थक प्रयास किया है।एक सफल रचनाकार की यही पहचान है कि  यदि वह किसी समस्या की और इशारा करे तो उसका समाधान भी सुझाए।काव्य संग्रह की प्रत्येक रचना कवि के मौलिक चिंतन का बेजोड़ नमूना है।वास्तव में मौलिक चिंतन की पराकाष्ठा के उपरांत ही रचनाकार के द्वारा सार्थक सर्जन हो पाता है।

          गिरे आँसू जहाँ मेरे,वहाँ पर गीत उग आए
          
इस पंक्ति  में कवि के भावों और संवेदनाओं का अथाह विस्तार देखने को मिलता है।कवि एक स्थान पर कहता है कि मेरे पास संसार को देने के लिए कुछ नहीं है सिवाय विरासत में पाई संस्कृति और संस्कारों की थाती के, जो मैं अपने गीतों के माध्यम से समाज को दे रहा हूँ।कवि की विनम्रता देखिए कि वह अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज को सब कुछ देकर भी अपने आपको तुच्छ की श्रेणी में ही रखता है।

           हमारे पास क्या है जो कि हम संसार को दे दें
           
कवि श्री यजुर्वेदी की विनम्रता का यह भाव उन्हें महान रचनाकारों की पंक्ति में खड़ा करता है। "एक गीत लिख" में कवि ने संदेश दिया है कि थोड़ा लिखो मगर सार्थक और शिक्षाप्रद लिखो।ऐसा लिखो जो जनमानस को झकझोर कर कुछ सोचने को मजबूर कर दे।यह संदेश नई पीढ़ी के रचनाकारों के लिए बहुत प्रेरणादायी हो सकता है।

              पा रहा जीवन प्रकृति से
              
इस पंक्ति से प्रारंभ होने वाली रचना में पर्यावरण असंतुलन के प्रति सह्रदय कवि की स्वाभाविक चिंता स्पष्ट झलकती है।पर्यावरण प्रदूषण/असंतुलन से आज असमय ही मानव सभ्यता के मिट जाने का ख़तरा उत्पन्न हो गया है।ऐसी स्थिति में कवि की यह रचना जनमानस को चेताने का एक सफल प्रयास है।

         चाहकर  भी तुम न उन्हें
         
उपरोक्त पंक्ति की  गीत रचना में विशाल भारत की सभ्यता और संस्कारों के दर्शन कराती ग्राम्य संस्कृति को बचाने की ललक का मार्मिक चित्रण है।

                बहुत ऊँची उड़ानें हैं

इस गीत रचना में भी इशारों ही इशारों में कवि ने भारतीय संस्कृति के प्रतीक गांवों की और लौटने का आह्वान किया है।

    युग-दर्शन
    
इस गीत में कवि ने  भागमभाग वाली ज़िंदगी में निरंतर खोती जा रही रिश्तों की मिठास और अपनत्व की भावना के अभाव का बड़ा ह्र्दयस्पर्शी चित्रण किया है।"दीपोत्सव" रचना में कवि ने सभी त्योहारों को संदेशपरक ढंग से मनाने की प्रेरणा दी है।

    लोकतंत्र में वोट की क़ीमत
    
इस रचना के माध्यम से जनता व समाज को जागरूक करने का सफल प्रयास रचनाकार द्वारा किया गया है।"माँ" रचना में माँ के प्रति प्रकट किए गए आदर के भाव और उसके ह्रदय में छिपी ममता और वेदना की अभिव्यक्ति बहुत मार्मिक बन पड़ी है।इनके अतिरिक्त बेटा , कर्फ़्यू, धरा के नैन हैं सजल और विश्वास बनाए रखिए जैसी रचनाएँ कवि की सह्रदयता और उसके मानवतावादी सोच को दर्शाती हैं।
काव्य संग्रह की भाषा सरल ,सहज और बोधगम्य है।जगह-जगह मुहावरों का भी बड़ी कुशलता के साथ प्रयोग किया गया है।सार रूप में यह कहना उचित होगा कि संग्रह की प्रत्येक रचना कवि के गहन चिंतन और शोध का सार्थक सर्जन है।मुझे आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि श्री यजुर्वेदी जी की यह स्तरीय कृति साहित्य जगत में बहुत आदर और सम्मान पाएगी। हर रचनाकार को इस गीत संग्रह को अवश्य पढ़ना चाहिए।
मैं अंत में अपनी इन पंक्तियों के माध्यम से कवि के प्रति आदर-भाव प्रकट करते हुए उन्हें शुभकामनाएँ देता हूँ--

         माँ शारदे  से मिल गया सदज्ञान  आपको,
         कैलाशपति  ने  दे  दिया वरदान आपको।
         सच मानिए यह गीत की निष्काम साधना,
         जग  में  दिलाएगी  नई  पहचान आपको।

                                         ओंकार सिंह विवेक
                              ग़ज़लकार,समीक्षक, स्वतंत्र विचारक व 
                                          ब्लॉगर
                                        रामपुर-उ0प्र0


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6 comments:

  1. सीताराम
    सुंदर समीक्षा।वरेण्य है।

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    1. प्रोत्साहन हेतु आभार आदरणीय🙏🙏

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  2. सुन्दर गहन मननपूर्ण समीक्षा!💐💐

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    1. हार्दिक आभार भाई जी

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  3. अच्छी और गहन समीक्षा , डाक्टर शिव शंकर जी और आप को बहुत बहुत बधाई। जय श्री राधे।

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    Replies
    1. हार्दिक आभार मान्यवर

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