November 20, 2020
दर्द का अहसास
November 18, 2020
November 16, 2020
November 10, 2020
November 8, 2020
October 31, 2020
October 27, 2020
October 26, 2020
रौशनी फूटेगी इस अँधियार से
October 22, 2020
विडंबना
October 19, 2020
पुस्तक के बहाने
October 15, 2020
सरोकार मानवीय संवेदनाओं से
October 9, 2020
प्रथम पुरस्कार प्राप्त ग़ज़ल
October 8, 2020
क्या करें वक़्त ही नहीं मिलता
October 7, 2020
October 6, 2020
महत्व संवाद का
October 4, 2020
हर किसी से प्यार कर
September 27, 2020
असर संगत का
September 23, 2020
प्रेरणा
September 19, 2020
क़ानून में सुधार भी अच्छे संस्कार भी
September 17, 2020
अच्छा आदमी
September 15, 2020
बीमारी वाह!वाह! की
जीवन-यात्रा
September 13, 2020
September 10, 2020
भारतेंदु हरिश्चंद्र जयंती पर विशेष
September 9, 2020
मन का पंछी
September 4, 2020
मन मिल जाएगा
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
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मोबाइल 9897214710
अपनेपन के बदले अपनापन मिल जाएगा,
आस यही है उनसे अपना मन मिल जाएगा।
नंद लला फिर से आ जाओ मथुरा-वृंदावन,
घर-घर तुमको मटकी में माखन मिल जाएगा।
काले धन वालों के हों जब ऊपर तक रिश्ते,
कैसे आसानी से काला धन मिल जाएगा।
सोचो दुनिया कितनी अच्छी हो जाएगी,जब,
हर भूखे को रोटी का साधन मिल जाएगा।
कब सोचा था हो जाएँगे दिल के ज़ख़्म हरे,
कब सोचा था आँखों को सावन मिल जाएगा।
------ओंकार सिंह विवेक
सर्वाधिकार सुरक्षित
August 31, 2020
किरदार से
August 27, 2020
ज़िंदगी से
August 25, 2020
पहले जैसे लोगों के व्यवहार नहीं रहने
August 24, 2020
जेबें हुईं उदास
August 20, 2020
August 19, 2020
निशाना
आँधियों में दिये जलाना है,
कुछ नया करके अब दिखाना है।
बात क्या कीजिये उसूलों की,
जोड़ औ तोड़ का ज़माना है।
फिर से पसरा है इतना सन्नाटा,
फिर से तूफ़ान कोई आना है।
झूठ कब पायदार है इतना,
दो क़दम चल के गिर ही जाना है।
ज़िन्दगी दायमी नहीं प्यारे,
एक दिन मौत सबको आना है।
इस क़दर बेहिसी के आलम में,
हाल दिल का किसे सुनाना है।
बज़्म में और भी तो बैठे हैं,
सिर्फ़ हम पर ही क्यों निशाना है।
------------ओंकार सिंह विवेेेक
August 18, 2020
अटल बिहारी बाजपेयी जी
August 16, 2020
मीठा-खारा
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
कुछ मीठा कुछ खारापन है,
क्या क्या स्वाद लिए जीवन है।
कैसे आँख मिलाकर बोले,
साफ़ नहीं जब उसका मन है।
शिकवे भी उनसे ही होंगे,
जिनसे थोड़ा अपनापन है।
धन ही धन है इक तबक़े पर,
इक तबक़ा बेहद निर्धन है।
सूखा है तो बाढ़ कहीं पर,
बरसा यह कैसा सावन है।
कल निश्चित ही काम बनेंगे,
आज भले ही कुछ अड़चन है।
दिल का है वह साफ़,भले ही,
लहजे में कुछ कड़वापन है।
----ओंकार सिंह विवेक
August 15, 2020
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August 14, 2020
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August 12, 2020
श्रीकृष्ण जी और कोरोना काल
August 11, 2020
August 7, 2020
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