August 31, 2020

किरदार से

ग़ज़ल---ओंकार सिंह विवेक
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तीर  से  मतलब   न  कुछ  तलवार  से,
हमको  मतलब  है  क़लम  की धार से।
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सुनते   सुनते   फिर   कहानी   रो  पड़ा,
जुड़  गया  वो  जब  किसी  किरदार से।
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ज़ोम   यूँ   तोड़ा    गया     तन्हाई   का,
बात    हम    करते    रहे    दीवार    से।
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कितनी महनत करके फ़न हासिल हुआ,
पूछ   कर   देखो  किसी   फ़नकार   से।
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दाम  वाजिब  कब  मिला  है  फ़स्ल  का,
इन  किसानों  को   किसी   सरकार   से।
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रख    ज़रा    नाकामियों    में    हौसला,
रौशनी    फूटेगी    इस    अँधियार    से।
 🌺          -----ओंकार सिंह विवेक
                    सर्वाधिकार सुरक्षित


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