ग़ज़ल---ओंकार सिंह विवेक
🌺
तीर से मतलब न कुछ तलवार से,
हमको मतलब है क़लम की धार से।
🌺
सुनते सुनते फिर कहानी रो पड़ा,
जुड़ गया वो जब किसी किरदार से।
🌺
ज़ोम यूँ तोड़ा गया तन्हाई का,
बात हम करते रहे दीवार से।
🌺
कितनी महनत करके फ़न हासिल हुआ,
पूछ कर देखो किसी फ़नकार से।
🌺
दाम वाजिब कब मिला है फ़स्ल का,
इन किसानों को किसी सरकार से।
🌺
रख ज़रा नाकामियों में हौसला,
रौशनी फूटेगी इस अँधियार से।
🌺 -----ओंकार सिंह विवेक
बहुत सुन्दर लाजबाब
ReplyDeleteजी शुक्रिया
ReplyDelete