ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
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शिकायत कुछ नहीं है ज़िंदगी से,
मिला जितना मुझे हूँ ख़ुश उसी से।
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मुक़द्दर से गिला वे कर रहे हैं,
हुए नाकाम जो अपनी कमी से।
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ज़रुरत और मजबूरी जगत में,
कराती हैं न क्या क्या आदमी से।
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जिन्होंने आस का दीपक जलाया,
हुए वे एक दिन परिचित ख़ुशी से।
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असर कुछ कर न पाये जो दिलों पर,
नहीं है फ़ायदा उस शायरी से।
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सार्थक और सुन्दर।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (30-08-2020) को "समय व्यतीत करने के लिए" (चर्चा अंक-3808) पर भी होगी।
ReplyDelete--
श्री गणेश चतुर्थी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आभार आदरणीय🙏
Deleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल।
ReplyDeleteआभार तिवारी जी
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