🌺 दोहै 🌺
------ओंकार सिंह विवेक
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भरता रहता है सखे ,यह हर समय उड़ान,
मन के पंछी को कभी, होती नहीं थकान।
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सब ही मैला कर रहे,निशि दिन इसका नीर,
यह नदिया किससे कहे,जाकर अपनी पीर।
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दिन भर हमने सूर्य की , किरणों से की बात,
रात घिरी तो देख ली , तारों की बारात।
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पत्नी से संवाद में , गए सखे जब हार,
बैठ गए चुपचाप फिर,पढ़ने को अख़बार।
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------ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बहुत सुन्दर दोहे।
ReplyDeleteआभार आदरणीय
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