September 9, 2020

मन का पंछी

🌺 दोहै 🌺
         ------ओंकार सिंह विवेक
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भरता  रहता  है सखे ,यह हर समय उड़ान,
मन के पंछी को कभी, होती  नहीं  थकान।

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सब  ही मैला कर  रहे,निशि दिन इसका नीर,
यह नदिया किससे कहे,जाकर  अपनी  पीर।

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दिन भर हमने सूर्य की , किरणों से की बात,
रात  घिरी  तो  देख  ली , तारों  की  बारात।

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पत्नी  से   संवाद  में , गए  सखे  जब  हार,
बैठ  गए चुपचाप फिर,पढ़ने  को अख़बार।

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                    ------ओंकार सिंह विवेक
                         (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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