वक़्त से पहले कोई काम पूरा नहीं होता।लगभग एक वर्ष पूर्व मैंने अपने प्रथम ग़ज़ल संग्रह को प्रकाशित कराने का निश्चय किया था।कुछ पारिवारिक व्यस्तताओं और लंबे कोरोना काल के कारण यह काम टलता चला जा रहा था।अब कुछ परिस्थितियाँ सामान्य होने पर पुनः एकाग्रता के साथ प्रयास किए हैं।सब कुछ ठीक रहता है तो नए वर्ष के प्रथम सप्ताह में मेरा ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" प्रतिक्रिया हेतु सभी शुभचिंतकों के संमुख आ जाएगा।इस अवसर पर मुझे यह सूचना साझा करते हुए ऐसी ही ख़ुशी का अनुभव हो रहा है जैसे परिवार में संतान के पैदा होने पर होता है।एक कवि या लेखक को अपनी पुस्तकें अपनी संतान जितनी ही प्रिय होती हैं। यहाँ आप सब की प्रतिक्रिया हेतु किताब का मुखपृष्ठ साझा कर रहा हूँ।
इंसानियत के फ़र्ज़ का आभास लिख दिया,
रिश्तों के टूटने का भी संत्रास लिख दिया।
जब फ़िक्र की उड़ान बढ़ी उसके फ़ज़्ल से,
मैंने जहाँ के दर्द का अहसास लिख दिया।
-----ओंकार सिंह विवेक
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