August 19, 2020

निशाना

ग़ज़ल-ओंकार सिंह 'विवेक'

आँधियों   में  दिये   जलाना  है,
कुछ नया करके अब दिखाना है।

बात  क्या  कीजिये  उसूलों  की,
जोड़ औ तोड़  का ज़माना    है।

फिर से पसरा है इतना  सन्नाटा,
फिर  से  तूफ़ान  कोई आना है।

झूठ   कब   पायदार   है   इतना,
दो क़दम चल के गिर ही जाना है।

ज़िन्दगी    दायमी   नहीं    प्यारे,
एक  दिन मौत सबको  आना है।

इस क़दर बेहिसी के  आलम  में,
हाल  दिल  का  किसे सुनाना है।

बज़्म  में  और  भी  तो  बैठे  हैं,
सिर्फ़ हम पर ही क्यों निशाना है।
------------ओंकार सिंह विवेेेक

8 comments:

  1. बेहतरीन गजल

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  2. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 20 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



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  3. हार्दिक आभार आ0

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