"अनकहे शब्द" संस्था द्वारा प्रथम पुरस्कार हेतु चुनी गई मेरी ग़ज़ल का आप भी आनंद लीजिए---
ग़ज़ल प्रतियोगिता: 62
----ग़ज़ल***ओंकार सिंह विवेक
कुछ मीठा कुछ खारापन है,
क्या क्या स्वाद लिए जीवन है।
कैसे आँख मिलाकर बोले,
साफ़ नहीं जब उसका मन है।
उनसे ही तो शिकवे होंगे,
जिनसे थोड़ा अपनापन है।
धन ही धन है इक तबक़े पर,
इक तबक़ा बेहद निर्धन है।
सूखा है तो बाढ़ कहीं पर,
बरसा यह कैसा सावन है।
कल निश्चित ही काम बनेंगे,
आज भले ही कुछ अड़चन है।
दिल का है वह साफ़,भले ही,
लहजे में कुछ कड़वापन है।
----ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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