🌷दोहे🌷
------ओंकार सिंह विवेक
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मँहगाई को देख कर ,जेबें हुईं उदास,
पर्वों का जाता रहा, अब सारा उल्लास।
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उसकी सुनता ही नहीं,कोई यहाँ पुकार,
चीख-चीख कर रात-दिन,मौन गया है हार।
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हैं विपदा में आज हम,बिगड़ी है हर बात,
किंतु हमारे भी कभी, बहुरेंगे दिन-रात।
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मिली कँगूरों को सखे,तभी बड़ी पहचान,
दिया नीव की ईंट ने,जब अपना बलिदान।
🌷 -----ओंकार सिंह विवेक
वर्तमान को गाते हुए सुन्दर दोहे।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु आभार आ0
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (26-08-2020) को "समास अर्थात् शब्द का छोटा रूप" (चर्चा अंक-3805) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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महंगाई के बाद अब कोरोना । सच मे सबका बुरा हाल है।
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार
Deleteसामायिक विषय पर सार्थक दोहे।
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