August 24, 2020

जेबें हुईं उदास

🌷दोहे🌷
       ------ओंकार सिंह विवेक
🌷
मँहगाई   को   देख  कर ,जेबें  हुईं  उदास,
पर्वों का  जाता  रहा, अब  सारा  उल्लास।
 🌷 
उसकी  सुनता  ही  नहीं,कोई  यहाँ  पुकार,
चीख-चीख कर रात-दिन,मौन गया है हार।
 🌷
हैं  विपदा  में  आज हम,बिगड़ी है हर बात,
किंतु  हमारे   भी  कभी, बहुरेंगे  दिन-रात।
  🌷  
मिली  कँगूरों  को  सखे,तभी बड़ी पहचान,
दिया नीव  की ईंट ने,जब अपना बलिदान।
🌷       -----ओंकार सिंह विवेक

6 comments:

  1. वर्तमान को गाते हुए सुन्दर दोहे।

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  2. उत्साहवर्धन हेतु आभार आ0

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (26-08-2020) को   "समास अर्थात् शब्द का छोटा रूप"   (चर्चा अंक-3805)   पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --  
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  4. महंगाई के बाद अब कोरोना । सच मे सबका बुरा हाल है।

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  5. सामायिक विषय पर सार्थक दोहे।

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