August 16, 2020

मीठा-खारा

ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710

कुछ  मीठा  कुछ  खारापन  है,
क्या क्या स्वाद लिए जीवन है।

कैसे   आँख   मिलाकर   बोले,
साफ़  नहीं जब उसका मन है।

शिकवे  भी   उनसे   ही   होंगे,
जिनसे   थोड़ा  अपनापन   है।

धन  ही  धन है इक तबक़े पर,
इक  तबक़ा  बेहद  निर्धन  है।

सूखा  है  तो  बाढ़  कहीं   पर,
बरसा  यह   कैसा  सावन  है।

कल  निश्चित  ही  काम  बनेंगे,
आज भले ही कुछ अड़चन है।

दिल  का है वह साफ़,भले ही,
लहजे  में  कुछ  कड़वापन है।
        ----ओंकार सिंह विवेक

6 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (17अगस्त 2020) को 'खामोशी की जुबान गंभीर होती है' (चर्चा अंक-3796) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार यादव जी

      Delete
  2. धन ही धन है इक तबक़े पर,
    इक तबक़ा बेहद निर्धन है।
    - इस युग की कड़वी हक़ीकत बयान करती बेहतरीन ग़ज़ल । हार्दिक आभार।

    ReplyDelete
  3. बेहद शुक्रिया आ0

    ReplyDelete

Featured Post

साहित्यिक सरगर्मियां

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏 साहित्यिक कार्यक्रमों में जल्दी-जल्दी हिस्सेदारी करते रहने का एक फ़ायदा यह होता है कि कुछ नए सृजन का ज़ेहन बना रहता ह...