ग़ज़ल-संग्रह "दर्द का अहसास" का विमोचन -------------------------------------
मेरे प्रथम ग़ज़ल-संग्रह "दर्द का अहसास" का विमोचन मेरे पिताजी श्री पी0 एल0 सैनी द्वारा किया गया।कोरोना काल को दृष्टिगत रखते हुए मैंने कोई बड़ा आयोजन न करते हुए पुस्तक का विमोचन दीपावली के शुभ अवसर पर अपने पिताश्री के कर कमलों द्वारा घर पर ही परिजनों की उपस्थिति में सादगी पूर्ण ढंग से सम्पन्न कराया।
प्रमुख साहित्यकारों /ग़ज़लकारों द्वारा की गयी मेरी ग़ज़लों की समीक्षा के कुछ अंश यहाँ उदधृत हैं---
तेज़ इतनी न क़दमों की रफ़्तार हो,
पाँव की धूल का सर पे अंबार हो।
न बन पाया कभी दुनिया के जैसा,
तभी तो मुझको दिक़्क़त हो रही है।
शिकायत कुछ नहीं है जिंदगी से,
मिला जितना मुझे हूँ ख़ुश उसी से।
ओंकार सिंह विवेक भाषा के स्तर पर साफ़-सुथरे रचनाकार हैं।अगर वह इसी प्रकार महनत करते रहे तो निश्चय ही एक दिन अग्रणी ग़ज़लकारों में शामिल होने के दावेदार होंगे।
----- अशोक रावत,ग़ज़लकार (आगरा)
सोचता हूँ अब हवा को क्या हुआ,
गुलसिताँ में ज़र्द हर पत्ता हुआ।
तंगहाली देखकर माँ - बाप की,
बेटी को यौवन लगा ढलता हुआ।
भरोसा जिन पे करता जा रहा हूँ,
मुसलसल उनसे धोखा खा रहा हूँ।
ओंकार सिंह विवेक के यहाँ जदीदियत और रिवायत की क़दम क़दम पर पहरेदारी नज़र आती है।उनकी संवेदनशील दृष्टि ने बड़ी बारीकी के साथ हालात का परीक्षण किया है।
----शायर(डॉ0 )कृष्णकुमार नाज़ (मुरादाबाद )
उसूलों की तिजारत हो रही है,
मुसलसल यह हिमाक़त हो रही है।
बड़ों का मान भूले जा रहे हैं,
ये क्या तहज़ीब हम अपना रहे हैं।
इधर हैं झुग्गियों में लोग भूखे,
उधर महलों में दावत हो रही है।
ओंकार सिंह विवेक की ग़ज़लों में वर्तमान अपने पूरे यथार्थ के साथ उपस्थित है। मूल्यहीनता, सामाजिक विसंगति, सिद्धांतहीनता, नैतिक पतन, सभ्यता और संस्कृति का क्षरण आदि ; आज का वह सब जो एक संवेदनशील व्यक्ति को उद्वेलित करता है,उनकी शायरी में मौजूद है।
----- साहित्यकार अशोक कुमार वर्मा,आई0 पी0 एस0 (सेनानायक,30 वीं वाहिनी पी0ए0सी0,गोण्डा)
विशेष---ग़ज़ल संग्रह लिस्टिंग के बाद शीघ्र ही फ्लिपकार्ट पर भी बिक्री के लिए उपलब्ध होगा। फ़िलहाल पुस्तक को गूगल पे अथवा पेटीएम द्वारा ₹200.00 (₹150.00 पुस्तक मूल्य तथा ₹50.00 पंजीकृत डाक व्यय) का मोबाइल संख्या 9897214710 पर भुगतान करके प्राप्त किया जा सकता है।
अधिक जानकारी के लिए मोबाइल संख्या 9897214710 पर सम्पर्क कर सकते हैं।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (22-11-2020) को "अन्नदाता हूँ मेहनत की रोटी खाता हूँ" (चर्चा अंक-3893) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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पहले गजल संग्रह की बहुत बहुत बधाई।
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