September 4, 2020

मन मिल जाएगा


ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
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अपनेपन  के  बदले  अपनापन  मिल जाएगा,
आस यही  है  उनसे अपना मन मिल जाएगा।

नंद लला  फिर  से  आ  जाओ मथुरा-वृंदावन,
घर-घर तुमको मटकी में माखन मिल जाएगा।

काले  धन  वालों  के हों जब ऊपर तक रिश्ते,
कैसे  आसानी  से  काला  धन  मिल जाएगा।

सोचो  दुनिया  कितनी अच्छी हो जाएगी,जब,
हर  भूखे  को  रोटी का  साधन मिल जाएगा।

कब  सोचा  था  हो  जाएँगे दिल के ज़ख़्म हरे,
कब सोचा था आँखों को सावन मिल जाएगा।
                             ------ओंकार सिंह विवेक
                                   सर्वाधिकार सुरक्षित

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (05-09-2020) को   "शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ"   (चर्चा अंक-3815)   पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  2. बहुत सुंदर रचना

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