असर संगत का
************
---------ओंकार सिंह विवेक
अक्सर कहते सुना जाता है कि अमुक आदमी चाल-चलन और व्यवहार का ठीक नहीं है।ऐसे आदमी से लोग बचने की नसीहत करते हैं जो ठीक भी है। यही कहने और सुनने में आता है कि उसकी संगत ही ठीक नहीं रही वरना उसका चाल-चलन और व्यवहार ऐसा न होता।निःसंदेह यह बात ठीक भी है।हम जिस परिवेश में रहेंगे उसका असर हमारे व्यक्तित्व पर निश्चित रूप से पड़ेगा।आदमी जिन लोगों के बीच रहता है उन लोगों के संस्कार भी सीखता है।नशा करने वालों या जुआ खेलने वालों के साथ उठने-बैठने वाले लोग अगर नशा करें या जुआ खेलें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है।आपराधिक या अनैतिक प्रवृत्तियों के लोगों के साथ उठने-बैठने से ऐसी ही आदतें हमारे अंदर विकसित होने का ख़तरा स्वाभाविक है।पर इससे इतर भी एक बात है जो महत्वपूर्ण है।कुछ लोग अपने अंदर कुछ ऐसे नैतिक और आध्यात्मिक बल का विकास कर लेते हैं कि अगर उनका बुरी संगत से वास्ता भी पड़े तो वे उससे प्रभावित हुए बिना अपने सदगुणों का ही विकास करते रहते हैं।वास्तव में यह एक आदर्श स्थिति है।इसके पीछे श्रेष्ठ व्यक्तियों का यही तर्क रहता है कि अगर बुरे लोग अपनी बुराई नहीं छोड़ रहे तो हम अपनी अच्छाई कैसे छोड़ दें। उनके ऐसे विचार अनुकरणीय एवं वंदनीय हैं।ऐसे व्यक्तित्वत वास्तव में विरले और महान होते हैं जिनसे हमें सदैव प्रेरणा लेनी चाहिए।
अतः जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए हमें सदैव बुरी संगत से बचना होगा और यदि बुरे लोगों के संपर्क में आना भी पड़े ,तो ऐसे लोगों को अपना आदर्श मानकर उनसे सीख लेनी होगी जो बुरी संगत में भी अपनी अच्छाईयों से विमुख नहीं हुए। बुरी संगत से दो चार होने पर हमें अपने उच्च आचरण और नीतिगत विचारों से बुरे लोगों को अच्छा बनाने का भरसक भरसक प्रयत्न करना चाहिए।
प्रसंगवश आज फिर अपने एक शेर से बात समाप्त करता हूँ--
यक़ीनी तौर पर सबको असर सोहबत का मिलता है,
मगर यह बात भी सच है कमल कीचड़ में खिलता है।
------ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
🌸
पंछी नभ में उड़ता था यह बात पुरानी है,
अब तो बस पिंजरा है ,उसमें दाना-पानी है।
🌸
वे ही आ पहुँचे हैं जंगल में आरी लेकर,
जो अक्सर कहते थे उनको छाँव बचानी है।
🌸
आज सफलता चूम रही है जो इन क़दमों को,
इसके पीछे संघर्षों की एक कहानी है।
🌸
मुस्काते हैं असली भाव छुपाकर चहरे के,
कुछ लोगों का हँसना-मुस्काना बेमानी है।
🌸
बाँध लिया जब अपना बिस्तर बरखा की रुत ने,
जान गए सब आने वाली सर्दी रानी है।
🌸
क्यों होता है जग में लोगों का आना-जाना,
आज तलक भी बात भला ये किसने जानी है।
🌸 -------ओंकार सिंह विवेक
बहुत सुन्दर।
ReplyDelete--
पुत्री दिवस की बधाई हो।
आदरणीय शास्त्री जी अतिशय आभार।आपको भी पुत्री दिवस की अशेष शुभकामनाएँ!!!!
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 28 सितंबर 2020 को "बेटी दिवस"(चर्चा अंक-3838) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
-रवीन्द्र सिंह यादव
सुन्दर
ReplyDeleteसुन्दर रचनाओं से परिपूर्ण ब्लॉग - - नमन सह।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शिक्षाप्रद लेख।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका🙏
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा आपने
ReplyDeleteआप सभी कुछ रोचक व् मर्मस्पर्शी कविताएँ पढ़ने के लिए मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं।पसन्द आएं तो फॉलो करके उत्साह बढ़ाएं।
जी अवश्य ही।हार्दिक आभार मान्यवर
ReplyDeleteSach kaha aapne
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
Delete