सरोकार मानवीय संवेदनाओं से ----
*****ओंकार सिंह विवेक
सोचा आज फिर कोई मानवीय संवेदना और सरोकार से जुड़ी बात की जाए----------
हमारे अनमोल जीवन की सार्थकता इस बात में है कि हम एक दूसरे के दुःख-दर्द को बाँटकर जीने की कला विकसित करें।दूसरों के दुख-दर्द को महसूस करके उसमें सहभागी बनने से जो ख़ुशी का भाव स्वयं के भीतर उत्पन्न होता है उसको बयान करना बहुत मुश्किल है।इस कला को अपने भीतर विकसित करने के लिए हमें अपने मन में बैठे छल ,कपट और द्वेष के भावों को दूर करना होगा।अगर ये भाव मन में घर जमाकर बैठे रहेंगे तो दया और परोपकार के भाव तो हमारे मन के दरवाज़े से ही वापस लौट जाएँगे। इस कड़ी में वाणी में मिठास के द्वारा अपने व्यक्तित्व का शृंगार करना भी अति आवश्यक है।हमारी वाणी से निकला प्रत्येक शब्द ऐसा हो कि सुनने वाले व्यक्ति का तन और मन प्रफुल्लित हो उठे। व्यक्तित्व के समग्र विकास के लिए इन गुणों का अपने अंदर विकास करते समय हमारे सामने अनेक बाधाएँ एवं संकट आ सकते हैं परंतु उनका हमें इस प्रकार सामना करना होगा जैसे एक नदी कंकरों और पत्थरों का सीना चीरकर बिना विचलित हुए पूरे वेग से बहती रहती है।
आज लोग अपने अंदर दया और प्रेम जैसे मानवीय गुणों का निरंतर ह्रास होने के कारण मानवता पर नफ़रतों के वार करके उसे घायल कर रहे हैं।ज़रूरत है कि हम सब मिलकर प्रेम और सद्भाव रूपी औषधियों के द्वारा नफ़रत के प्रहार से घायल हुई मानवता का उपचार करके उसका जीवन बचाएँ।
प्रसंगवश अपनी ग़ज़ल के दो शेरों को उदधृत करते हुए बात समाप्त करता हूँ--
हो सके जितना भी तुझसे उम्र भर उपकार कर,
बाँट कर दुख-दर्द बंदे हर किसी से प्यार कर।
नफ़रतों की चोट से इंसानियत घायल हुई,
ज़िंदगी इसकी बचे ऐसा कोई उपचार कर।
🙏🙏💥💥ओंकार सिंह विवेक
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१७-१०-२०२०) को 'नागफनी के फूल' (चर्चा अंक-३८५७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
very good
ReplyDeleteसुन्दर
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ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
18/10/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
आदरणीय कुलदीप जी सादर आभार🙏
ReplyDeleteवाणी में मिठास के द्वारा अपने व्यक्तित्व का शृंगार करना भी अति आवश्यक है....
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत सटीक सुन्दर एवं सार्थक सृजन
आदरणीया सुधा देवरानी जी आपका ह्रदय से आभार
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