December 24, 2020
स्व0श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी,स्व0श्री मदन मोहन मालवीय जी एवं स्व0 श्री धर्मवीर भारती जी को श्रद्धा सुमन
December 22, 2020
December 18, 2020
हैरानी से
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
दूर है वो रिश्वत के दाना - पानी से,
देख रहे हैं सब उसको हैरानी से।
यार बड़ों के दिल का दुखना लाज़िम है,
नस्ले - नौ की पैहम नाफ़रमानी से।
कुछ करना इतना आसान नहीं होता,
कह देते हैं सब जितनी आसानी से।
मुझको घर में मात-पिता तो लगते हैं,
राजभवन में बैठे राजा - रानी से।
रखनी पड़ती है लहजे में नरमी भी,
काम नहीं होते सब सख़्त ज़ुबानी से।
ज़ेहन को हरदम कसरत करनी पड़ती है,
शेर नहीं होते इतनी आसानी से।
होना है सफ़ में शामिल तैराकों की,
और उन्हें डर भी लगता है पानी से।
---–-ओंकार सिंह विवेक
https://vivekoks.blogspot.com/?m=1
December 14, 2020
सब्र का सरमाया
ग़ज़ल**ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
सब्र करना जाने क्यों इंसान को आया नहीं,
जबकि इससे बढ़के जग में कोई सरमाया नहीं।
आदमी ने नभ के बेशक चाँद-तारे छू लिए,
पर ज़मीं पर आज भी रहना उसे आया नहीं।
धीरे - धीरे गाँव भी सब शहर जैसे हो गए,
अब वहाँ भी आँगनों में नीम की छाया नहीं।
लोग कहते हों भले ही चापलूसी को हुनर,
पर कभी उसको हुनर हमने तो बतलाया नहीं।
ज़हर नफ़रत का बहुत उगला गया तक़रीर में,
शुक्र समझो शहर का माहौल गरमाया नहीं।
देखलीं करके उन्होंने अपनी सारी कोशिशें,
झूठ का पर उनके हम पर रंग चढ़ पाया नहीं।
----ओंकार सिंह विवेक
www.vivekoks.blogspot.com
December 8, 2020
November 29, 2020
सर्दियाँ कैसे होंगी पार
November 28, 2020
November 20, 2020
दर्द का अहसास
November 18, 2020
November 16, 2020
November 10, 2020
November 8, 2020
October 31, 2020
October 27, 2020
October 26, 2020
रौशनी फूटेगी इस अँधियार से
October 22, 2020
विडंबना
October 19, 2020
पुस्तक के बहाने
October 15, 2020
सरोकार मानवीय संवेदनाओं से
October 9, 2020
प्रथम पुरस्कार प्राप्त ग़ज़ल
October 8, 2020
क्या करें वक़्त ही नहीं मिलता
October 7, 2020
October 6, 2020
महत्व संवाद का
October 4, 2020
हर किसी से प्यार कर
September 27, 2020
असर संगत का
September 23, 2020
प्रेरणा
September 19, 2020
क़ानून में सुधार भी अच्छे संस्कार भी
September 17, 2020
अच्छा आदमी
September 15, 2020
बीमारी वाह!वाह! की
जीवन-यात्रा
September 13, 2020
September 10, 2020
भारतेंदु हरिश्चंद्र जयंती पर विशेष
September 9, 2020
मन का पंछी
September 4, 2020
मन मिल जाएगा
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
*********************
मोबाइल 9897214710
अपनेपन के बदले अपनापन मिल जाएगा,
आस यही है उनसे अपना मन मिल जाएगा।
नंद लला फिर से आ जाओ मथुरा-वृंदावन,
घर-घर तुमको मटकी में माखन मिल जाएगा।
काले धन वालों के हों जब ऊपर तक रिश्ते,
कैसे आसानी से काला धन मिल जाएगा।
सोचो दुनिया कितनी अच्छी हो जाएगी,जब,
हर भूखे को रोटी का साधन मिल जाएगा।
कब सोचा था हो जाएँगे दिल के ज़ख़्म हरे,
कब सोचा था आँखों को सावन मिल जाएगा।
------ओंकार सिंह विवेक
सर्वाधिकार सुरक्षित
August 31, 2020
किरदार से
August 27, 2020
ज़िंदगी से
August 25, 2020
पहले जैसे लोगों के व्यवहार नहीं रहने
August 24, 2020
जेबें हुईं उदास
Featured Post
उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की सातवीं काव्य गोष्ठी संपन्न
फेंकते हैं रोटियों को लोग कूड़ेदान में ***************************** यह सर्वविदित है कि सृजनात्मक साहित्य पुरातन ...
-
(प्रथमा यू पी ग्रामीण बैंक सेवानिवृत्त कर्मचारी कल्याण समिति के अध्यक्ष श्री अनिल कुमार तोमर जी एवं महासचिव श्री इरफ़ान आलम जी) मित्रो संग...
-
बहुुुत कम लोग ऐसे होते हैैं जिनको अपनी रुचि के अनुुुसार जॉब मिलता है।अक्सर देेखने में आता है कि लोगो को अपनी रुचि से मेल न खाते...
-
शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏 संगठन में ही शक्ति निहित होती है यह बात हम बाल्यकाल से ही एक नीति कथा के माध्यम से जानते-पढ़ते और सीखते आ रहे हैं...