दोहे सर्दी के
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----ओंकार सिंह विवेक
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मचा दिया कैसा यहाँ , कुहरे ने कुहराम,
दिन निकले ही लग रहा,घिर आई हो शाम।
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हर पल बढ़ता देखकर ,शीत लहर का ताव,
गली-सड़क के मोड़ पर,जलने लगे अलाव।
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गर्म सूट में सेठ का , जीना हुआ मुहाल,
पर नौकर ने शर्ट में, जाड़े दिए निकाल।
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सोचें जैकब -हाशमी , नानक -रामस्वरूप,
सूरज निकले तो तनिक,सेकें हम भी धूप।
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तिल के लड्डू -रेवड़ी , मूँगफली -बादाम,
तन को देते हैं बहुत , सर्दी में आराम।
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तन पर लिपटे चीथड़े, और शीत की मार,
निर्धन सोचे सर्दियाँ , कैसे होंगी पार।
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जब कुहरे ने रात-दिन,खेला शातिर खेल,
पड़ी काटनी सूर्य को , कई-कई दिन जेल।
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------ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteगुरु नानक देव जयन्ती
और कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
Sundar aur samayik
ReplyDeleteहार्दिक आभार
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