December 31, 2021
नया साल : एक कामना
December 30, 2021
सर्दी के नाम
December 27, 2021
December 25, 2021
अटल जी की स्मृति में
December 23, 2021
December 21, 2021
अब एक भी दरख़्त पे पत्ता नहीं रहा
December 19, 2021
एक नवगीत सामाजिक विसंगतियों और विरोधाभासों के नाम
December 13, 2021
घर से निकल पड़े हैं तीर-ओ-कमान लेकर
December 11, 2021
सर्दी का नवगीत : अलसाई-सी धूप
December 9, 2021
दोहे सर्दी के
December 7, 2021
वरिष्ठता-ज्ञान तथा अनुभव
December 4, 2021
माँ का आशीष फल गया होगा
December 1, 2021
आज कुछ दोहे यों भी
November 27, 2021
धुर विरोधी दलों में भी यारी हुई
ग़ज़ल--ओंकार सिंह विवेक
सूचना क्या इलक्शन की जारी हुई,
धुर विरोधी दलों में भी यारी हुई।
दीन दुनिया से बिल्कुल ही अनजान थे,
घर से निकले तो कुछ जानकारी हुई।
आज निर्धन हुआ और निर्धन यहाँ,
जेब धनवान की और भारी हुई।
मुझपे होगा भी कैसे बला का असर,
माँ ने मेरी नज़र है उतारी हुई।
खेद इसका है गतिरोध टूटा नहीं,
बात उनसे निरंतर हमारी हुई।
--- ओंकार सिंह विवेक
(Copy right)
November 25, 2021
एक अनूठा प्रयोग : टैगोर काव्य गोष्ठी
November 22, 2021
माँ का आशीष फल गया होगा
दोस्तो हाज़िर है एक नई ग़ज़ल फिर से आपकी अदालत में
2 1 2 2 1 2 1 2 2 2/1 1 2
फ़ाइलातुन मुफाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन
ग़ज़ल-- ©️ओंकार सिंह विवेक
©️
माँ का आशीष फल गया होगा,
गिर के बेटा सँभल गया होगा।
ख़्वाब में भी न था गुमां मुझको,
दोस्त इतना बदल गया होगा।
छत से दीदार कर लिया जाए,
चाँद कब का निकल गया होगा।
©️
सच बताऊँ तो जीत से मेरी,
कुछ का तो दिल ही जल गया होगा।
आईना जो दिखा दिया मैंने,
बस यही उसको खल गया होगा।
जीतकर सबका एतबार 'विवेक',
चाल कोई वो चल गया होगा।
-- ©️ओंकार सिंह विवेक
November 17, 2021
आँसुओं की ख़ुद्दारी
ग़ज़ल-- ©️ ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
©️
रंज - ख़ुशी के दावतनामे जाते हैं,
यूँ ही कब पलकों तक आँसू आते हैं।
कैसे कह दें उनको रागों का ज्ञाता,
रात ढले तक राग यमन जो गाते हैं।
वक़्त की गर्दिश करती है जो ज़ख़्म अता,
वक़्त की रहमत से वो भर भी जाते हैं।
©️
शुक्र अदा करना तो बनता है इनका,
हम जंगल - नदियों से जितना पाते हैं।
उनका क्या लेना - देना सच्चाई से,
वो तो केवल अफ़वाहें फैलाते हैं।
फैट-शुगर बढ़ने का ख़तरा क्या होगा,
हम निर्धन तो रूखी-सूखी खाते हैं।
--- ©️ ओंकार सिंह विवेक
November 11, 2021
"दर्द का अहसास"--एक समीक्षा
November 10, 2021
उम्र भर उपकार कर
शुभ संध्या🙏🙏
सभी ग़ज़ल प्रेमी साहित्य मनीषियों का हार्दिक स्वागत और अभिनंदन ।
प्रस्तुत है मेरी बहुत आसान बह्र में कही गई एक ग़ज़ल
जिसमें अधिक से अधिक हिंदी शब्दों के प्रयोग का प्रयास
किया है।
अरकान-- फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
वज़्न -- 2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2
🌷
हो सके जितना भी तुझसे उम्र भर उपकार कर,
बाँट कर दुख-दर्द बंदे हर किसी से प्यार कर।
🌷
छल-कपट के भाव करते हैं सदा मन का अहित,
हो तनिक यदि इनकी आहट बंद मन के द्वार कर।
🌷
जिसको सुनते ही ख़ुशी से सबके तन-मन खिल उठें,
ऐसी वाणी से सदा व्यक्तित्व का शृंगार कर।
🌷
विश्व के कल्याण की जिनसे प्रबल हो भावना,
उन विचारों का सदा मस्तिष्क में संचार कर।
🌷
पर्वतों को चीरकर जो बह रही है शान से,
प्रेरणा ले उस नदी से संकटों को पार कर।
🌷
नफ़रतों की चोट से इंसानियत घायल हुई,
ज़िंदगी इसकी बचे ऐसा कोई उपचार कर।
🌷
---ओंकार सिंह विवेक
(सर्वधिकार सुरक्षित)
November 8, 2021
शेरों में ढाल के
November 6, 2021
दर्द का अहसास
November 3, 2021
पुस्तक समीक्षा-- "दर्द का अहसास "
November 2, 2021
शुभ दीपावली
October 31, 2021
देशप्रेम
October 29, 2021
पुस्तक समीक्षा
October 25, 2021
पुस्तक विमोचन समारोह
October 22, 2021
नगर में अब वो नज़्ज़ारे नहीं हैं
October 15, 2021
फ़िक्र के पंछियों को उड़ाया बहुत
ग़ज़ल-- ©️ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
©️
फ़िक्र के पंछियों को उड़ाया बहुत,
उसने अपने सुख़न को सजाया बहुत।
हौसले में न आई ज़रा भी कमी,
मुश्किलों ने हमें आज़माया बहुत।
उसने रिश्तों का रक्खा नहीं कुछ भरम,
हमने अपनी तरफ़ से निभाया बहुत।
©️
लौ दिये ने मुसलसल सँभाले रखी,
आँधियों ने अगरचे डराया बहुत।
हुस्न कैसे निखरता नहीं रात का,
चाँद- तारों ने उसको सजाया बहुत।
मिट गई तीरगी सारी तनहाई की,
उनकी यादों से दिल जगमगाया बहुत।
--- ©️ओंकार सिंह विवेक
October 10, 2021
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