October 10, 2021

आग से माली के रिश्ते हो गए

फ़ाइलातुन    फ़ाइलातुन   फ़ाइलुन
ग़ज़ल-- ©️ओंकार सिंह विवेक
©️
आग   से   माली   के   रिश्ते   हो  गए,
बाग़  को  ख़तरे  ही   ख़तरे   हो  गए।

साथ   में   क्या   और  होने   को  रहा,
दुश्मनों  की   सफ़  में  अपने  हो गए।

कब  किसी  का लेते  थे अहसान हम,
क्या    करें    हालात   ऐसे    हो   गए।
©️
चाहिए  क्या और  मुफ़लिस बाप को,
लाडली    के   हाथ   पीले   हो    गए।

जिनको होना था अलग कुछ भीड़ से,
आज   वो   भी   भीड़  जैसे  हो   गए।
       
भाव   अपने  -  ग़ैर   सब   देने   लगे,
जेब   में   जब    चार   पैसे   हो  गए।          
       ----©️ ओंकार सिंह विवेक
              

8 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (11 -10-2021 ) को 'धान्य से भरपूर, खेतों में झुकी हैं डालियाँ' (चर्चा अंक 4211) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. हार्दिक आभार यादव जी

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  2. बहुत सुंदर पंक्तियों से सजी रचना..।

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    1. हार्दिक आभार शर्मा जी

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  3. बहुत अच्‍छे शेर हैं। मनुष्‍य स्‍वभाव और वास्‍तविकताओं को बहुत सुन्‍दरता से उकेरा है। पढवाने के लिए धन्‍यवाद।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  4. वाह! बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति

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