October 22, 2021

नगर में अब वो नज़्ज़ारे नहीं हैं

ग़ज़ल-- ©️ओंकार सिंह विवेक
मुफ़ाईलुन   मुफ़ाईलुन    फ़ऊलुन
©️
खिले - से   चौक - चौबारे   नहीं   है,
नगर  में  अब   वो   नज़्ज़ारे  नहीं  हैं।

बचाते  हैं  जो   इन  अपराधियों  को,
वो  क्या  सत्ता  के  गलियारे  नहीं हैं।

गुमां   तोडेंगे   जल्दी    आसमां   का,
परिंदे     हौसला     हारे     नहीं    हैं ।

तलब  है   कामयाबी  की   सभी  को ,
हमीं   इस   दौड़   में   न्यारे   नहीं   हैं।
©️
बना  बैठा   है  जो  अब  शाह , उसने-
भला किस-किस के हक़ मारे नहीं हैं।

हैं  जितनी  ख़्वाहिशें मन  में बशर के,
गगन   में   इतने   तो   तारे   नहीं   हैं।

नज़र  से  एक   ही,  देखो  न  सबको,
बुरे   कुछ   लोग   हैं   सारे   नहीं   है।

उन्हें   भाती   है   आवारा   मिज़ाजी,
कहें    कैसे    वो    बंजारे    नहीं   हैं।
-----©️ओंकार सिंह विवेक

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