December 11, 2021

सर्दी का नवगीत : अलसाई-सी धूप

आज एक नवगीत : सर्दी के नाम
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      --  ©️ओंकार सिंह विवेक
छत पर आकर बैठ गई है,
अलसाई-सी धूप।

सर्द हवा खिड़की से आकर,
मचा रही है शोर।
काँप रहा थर-थर कुहरे के,
डर से प्रतिपल भोर।
दाँत बजाते घूम रहे हैं,
काका रामसरूप।

अम्मा देखो कितनी जल्दी,
आज गई हैं जाग।
चौके में बैठी सरसों का,
घोट रही हैं साग।
दादी छत पर  ले आई हैं,
नाज फटकने सूप।

आए थे पानी पीने को,
चलकर मीलों-मील।
देखा तो जाड़े के मारे,
जमी हुई थी झील।
करते भी क्या,लौट पड़े फिर,
प्यासे वन के भूप।
    ---  ©️ओंकार सिंह विवेक

चित्र--गूगल से साभार

4 comments:

  1. वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब नवगीत
    शिशिर की छटा बिखर रही हैं सरसों के साग संग।

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    1. प्रोत्साहन हेतु आभार आदरणीया

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  2. बहुत सुन्दर दृश्य खींच दिया सर्दी का .... लाजवाब ..

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीया

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