आज एक नवगीत : सर्दी के नाम
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-- ©️ओंकार सिंह विवेक
छत पर आकर बैठ गई है,
अलसाई-सी धूप।
सर्द हवा खिड़की से आकर,
मचा रही है शोर।
काँप रहा थर-थर कुहरे के,
डर से प्रतिपल भोर।
दाँत बजाते घूम रहे हैं,
काका रामसरूप।
अम्मा देखो कितनी जल्दी,
आज गई हैं जाग।
चौके में बैठी सरसों का,
घोट रही हैं साग।
दादी छत पर ले आई हैं,
नाज फटकने सूप।
आए थे पानी पीने को,
चलकर मीलों-मील।
देखा तो जाड़े के मारे,
जमी हुई थी झील।
करते भी क्या,लौट पड़े फिर,
प्यासे वन के भूप।
--- ©️ओंकार सिंह विवेक
वाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब नवगीत
शिशिर की छटा बिखर रही हैं सरसों के साग संग।
प्रोत्साहन हेतु आभार आदरणीया
Deleteबहुत सुन्दर दृश्य खींच दिया सर्दी का .... लाजवाब ..
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
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