November 11, 2021

"दर्द का अहसास"--एक समीक्षा

इंदौर,मध्य प्रदेश की सुप्रसिद्ध साहित्यकार और समाज सेविका आदरणीया तृप्ति मिश्रा साहिबा ने मेरे ग़ज़ल संग्रह दर्द का अहसास की समीक्षा लिखकर प्रेषित की है जिसे आप सब के साथ साझा कर रहा हूँ। मैं आदरणीया तृप्ति मिश्रा जी की सदाशयता हेतु उनका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ।

*सीधे दिल को छूता हुआ "दर्द का एहसास"*

सोचता हूँ अब हवा को क्या हुआ,
गुलसितां  में ज़र्द  हर पत्ता हुआ।

हाथ   पर    कैसे   चढ़े  रंगे-हिना ,
जब ख़ुशी पर रंज का पहरा हुआ।

आज हाथों में जनाब ओंकार सिंह "विवेक" जी की "दर्द का एहसास" आ गई और पहले-पहल के इन शेरों को पढ़कर इस किताब में छुपे दर्द के एहसास का अंदाज़ा हुआ। इसके बाद हर्फ़-दर-हर्फ़ डूबती गई और पूरी अठ्ठावन ग़ज़लों में ज़ाहिर टीस के ऊपर अपने को कुछ कहने से रोक न पाई। माज़रत के साथ इन गजलों के बारे में कुछ कहने की हिमाक़त कर रही हूँ।

यूँ तो कोरोना भले ही काल बनकर आया है पर साहित्य की बिसरती-सी इस दुनिया में, डिजिटल दुनिया ने समझो एक नई जान फूँक दी। जो वाक़ई क़लमकार थे, उन्होंने वक्त का सही उपयोग कर अपने फ़न को ख़ूब निखारा। ओंकार सिंह "विवेक" जी से भी मेरा 
तआरुफ़ डिजिटल दुनिया के साथ ही हुआ है। इनकी उम्दा ग़ज़लों  से रूबरू होकर ही मुझे इनकी उम्दा शख़्सियत का अंदाज़ा हुआ। यूँ तो ग़ज़ल कहना मेरे बस की बात नहीं है और बह्र, तरन्नुम, तहत यह सब सीख ही रही हूँ, कुछ-कुछ समझने भी लगी हूँ। 

आज के माहौल में कई लोग चंद शेर लिखकर अपने को ग़ज़लकार कहते हैं। पर जितना मैंने जाना है, ग़ज़ल में बह्र के साथ कहन या भाव भी होना चाहिए और शुरू से आख़िर तक शेर-दर-शेर यह ग़ज़ल बढ़े और आख़िरी शेर में मुक्कमल दिखे। विवेक जी की ग़ज़लें इस बात पर खरी उतरती हैं, जो आजकल अन्य ग़ज़लों में कम ही नज़र आता है। अठ्ठावन गजलों के इस गुलदस्ते में दर्द का हर रंग है। हर ग़ज़ल ख़ुद को किसी-ना-किसी से जोड़ती है।कई शेर पढ़कर ऐसा लगता है कि शायद आप की अपनी शख़्सियत पर ही लिखे गए हों। चुनाँचे इन  ग़ज़लों में अक्स और सरोकार दोनों देखे जा सकते हैं। चंद अशआर देखिए 

नस्ले-नौ पर है असर जब से नई तहज़ीब का,
तबसे ख़तरे  में  यहाँ  हर बाप  की दस्तार है।

नई तहज़ीब के सहने- चमन में,
हया  के  फूल  मुरझाने  लगे हैं ।

इन शेरों में नई नस्ल के तौर-तरीक़ों पर करारा तंज़ है।

आज के ज़माने में हर कोई अपने को सामने वाले से ज़ियादा समझता है। रिश्तों की कशमकश पर  इनकी कहन देखिए-

नहीं है बात समझौते की कोई ,
जिसे देखो वही ज़िद पर अड़ा है 

लोग, हमसाये पे गुज़रा हादसा,
जानते हैं सुब्ह  के अख़बार से।

अमीरे-शहर  वो  कैसे  बना है,
नगर के सब ग़रीबों को पता है।

 विवेक जी की इन ग़ज़लों में दर्द के साथ उस दर्द से उबरने की ताकीद भी है। चंद अशआर ज़रूर यहाँ आप सब की नज़्र करना चाहूँगी--

हौसला अपना ग़मे-ज़ीस्त पे भारी रखिए,
ज़िन्दगी जंग है इस जंग को जारी रखिए।

इंसानियत-मुहब्बत- तहज़ीब की हिमायत,
शिद्दत से  मेरी ग़ज़लों  में  बार-बार होगी ।

हमें अश्कों को पीना आ गया है, 
ग़रज़ यह है कि जीना आ गया है। 

दाद मिली महफ़िल में थोड़ी तो ऐसा महसूस हुआ, 
ग़ज़लों  में हमने  भी  शायद अच्छे  शेर निकाले थे। 

जी हाँ, विवेक जी आपने अपने क़लम से बेहद उम्दा अशआर निकाले हैं। जिनको पढ़-पढ़ कर दाद अपने आप ही निकल जाती है। हर ग़ज़ल ख़ूबसूरती के साथ अपनी बात कहती है। मेरा दावा है "दर्द का एहसास" पढ़ने वाले इन ग़ज़लों में ज़रूर अपने आसपास को पा सकेंगे।  ग़ज़ल ख़ूबसूरत बहरों में मुकम्मल बात, जो सीधे दिल को छुए वह कहती है यह किताब "दर्द का एहसास" ।मैं अपेक्षा करूँगी कि संवेदनशील साहित्य में रुचि रखने वाले इसे ज़रूर पढ़ें।

लेखनी चलती रहे
इन्हीं शुभकामनाओं के साथ

 सादर 
तृप्ति मिश्रा

प्रस्तुतकर्ता--ओंकार सिंह विवेक

13 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 12 नवंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    1. हार्दिक आभार यादव जी

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  2. बहुत ही उम्दा प्रस्तुति

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  3. हौसला अपना ग़मे-ज़ीस्त पे भारी रखिए,
    ज़िन्दगी जंग है इस जंग को जारी रखिए।
    लाजवाब 🙏

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    Replies
    1. हार्दिक आभार चौधरी साहब

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  4. वाह!!!शानदार समीक्षा पुस्तक पढने को लालायित करती हुई...
    बहुत बहुत बधाई आप दोनों को एवं शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  5. वाह!!!शानदार समीक्षा पुस्तक पढने को लालायित करती हुई...
    बहुत बहुत बधाई आप दोनों को एवं शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका।आप डाक पता भेजें पुस्तक भेज दी जाएगी।

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  6. सार्थक समीक्षा । आप दोनों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ।

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  7. एक बेहतरीन सृजन अवश्य ही सहेजें जाने योग्य है।

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