October 29, 2021

पुस्तक समीक्षा

              पुस्तक समीक्षा
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कृति      :  काव्य-ज्योति
कृतिकार :रामरतन यादव रतन
समीक्षक  :ओंकार सिंह विवेक

भाई रामरतन यादव रतन जी की भावनाओं और संवेदनाओं के ज्वार को समेटे हुए उनकी प्रथम काव्य-कृति "काव्य ज्योति' के रूप में हमारे सामने है।
कृति के नाम से ही स्पष्ट है कि अपने काव्य के प्रकाश से समाज को आलोकित करना ही कवि का एकमात्र ध्येय है। कवि ने पुस्तक में माँ सरस्वती की वंदना के उपरांत एक सैनिक से देश की रक्षा का आह्वान करते हुए अपने सृजन का शुभारंभ किया है।इससे कवि के देशभक्ति के जज़्बे का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।कवि की काव्य चेतना समाज में व्याप्त सदमूल्यों के ह्रास, पारिवारिक विघटन,भ्रष्टाचार तथा राजनैतिक पतन आदि से आहत होकर अपनी रचनाओं के माध्यम से आदर्शों व सदमूल्यों की स्थापना एवं चारित्रिक उत्थान का आह्वान करती है।श्री रामरतन यादव जी की सर्जना का फ़लक अत्यंत विस्तृत है अतः उन्होंने अपनी निर्बाध लेखनी से राष्ट्र प्रेम,पारिवारिक और सामाजिक रिश्ते,प्रकृति चित्रण,सामाजिक विसंगतियों तथा शृंगार की कोमल अनुभूतियों सहित जीवन से जुड़े तमाम पहलुओं को छुआ है।
कवि ने कहीं हिमालय की वेदना को मानवीकरण के माध्यम से मार्मिक अभिव्यक्ति दी है तो कहीं पारिवारिक रिश्तों का कविता में यथार्थ चित्रण किया है।पापा शीर्षक से अपनी एक रचना में कवि कहता है--
      मेरी उम्मीद और विश्वास की पहचान हैं पापा,
      हैं  सागर से बहुत गहरे, मेरे अरमान हैं पापा।
इन पंक्तियों में निहित पिता के प्रति सम्मान और आस्था का भाव कवि के उच्च संस्कारों को दर्शाता है।कवि की अधिकांश रचनाओं में सहज प्रवाह है जो आकर्षित करता है।एक स्थान पर नशा शीर्षक से नशे के दुष्परिणामों से आगाह करती ये पंक्तियाँ प्रभावशाली बन पड़ी हैं--
       जल गए कितने बसेरे इस नशे की आग से,
       हो गईं विधवा,सुहागिन इस नशे के राग से।
बेटियों को लेकर कवि के ह्रदय में असीम स्नेह और श्रद्धा का भाव है।बेटियों को समर्पित कई रचनाएँ संकलन में मौजूद हैं।बेटियों के प्रति उनकी श्रद्धा का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके इस संकलन का नामकरण  उनकी बेटी ज्योति के नाम पर है।बेटियों को लेकर उनकी ये पंक्तियाँ देखिए--

          माँ-बाप का हर दर्द समझती हैं बेटियाँ,
          माँ-बाप के अनुसार ही चलती हैं बेटियाँ।
कवि ने अपनी रचनाओं में देशप्रेम, कृष्णजन्म,वसंत ऋतु,वर्षा तथा विभिन्न त्योहारों आदि का बड़ा मनोहारी और जीवंत चित्रण प्रस्तुत किया है।अपने एक देशभक्ति गीत में कवि कहता है-

         हम भारत माँ के रक्षक हैं हमें फ़र्ज़ निभाना आता है,
         धरती माँ के अहसानों का हमें क़र्ज़ चुकाना आता है।
ये पंक्तियाँ हमें बताती हैं कि कवि देश और धरती के प्रति अपने दायित्वों को कितनी गहराई से समझता है।वर्तमान युग के संचार साधनों जैसे मोबाइल और इंटरनेट आदि  पर भी कवि ने अपनी लेखनी चलाई है।एक रचना में नई पीढ़ी पर पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव की अभिव्यक्ति देखिए--
           अजब हाल है इस पीढ़ी का तनिक नहीं शरमाते हैं,
           माता को मॉम बुलाकरके,पापा को डैड बुलाते हैं।
पुस्तक के प्रारंभ में कवि की अधिकांश रचनाएँ भावना प्रधान हैं जिनको किसी विधा विशेष के अंतर्गत वर्गीकृत नहीं किया गया है।इन सभी रचनाओं का भाव पक्ष निःसंदेह प्रभावित करता है।अंत में कुछ रचनाओं को साधिकार गीत,दोहा,मुक्तक ,सायली तथा घनाक्षरी आदि विधाओं के अंतर्गत सृजित किया गया है जहाँ कवि ने यथासंभव शिल्प को साधने का सफल प्रयास किया है।
एक कवि को अपनी प्रथम कृति के प्रकाशन पर ऐसे ही गर्व का अनुभव होता है जैसे घर में पहली संतान के उत्पन्न होने पर होता है।अतः मैं आज रामरतन यादव जी और उनके परिवार की ख़ुशी को समझ सकता हूँ।
"काव्य-ज्योति" को जितना भी मैंने पढ़ा है उसके आधार पर मैं कह सकता हूँ कि रामरतन यादव जी में कवि के रूप में असीम संभावनाएँ विद्यमान हैं।इनके पास शब्द और भावों के साथ एक अच्छा तरन्नुम भी है जिसके कारण यह मंचों पर बहुत सफल हैं और रहेंगे।
जहाँ तक सीखने और सिखाने का प्रश्न है यह जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है।किसी भी प्रकार के सृजन में निखार और सुधार की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है अतः रामरतन यादव जी की इस प्रथम कृति को भी इसी नज़रिए से देखा जाना चाहिए।निरंतर अभ्यास और सीखने की ललक किसी भी व्यक्ति को कहीं से कहीं पहुँचा सकती है।मुझे आशा है कि निकट भविष्य में श्री रामरतन यादव रतन जी की कथ्य और शिल्प की कसावट लिए अनेक और कृतियाँ मूल्यांकन हेतु साहित्यकारों के संमुख आएँगी।
मैं श्री यादव जी को उनकी इस प्रथम काव्य कृति के विमोचन के शुभ अवसर पर ह्रदय से बधाई देता हूँ और कामना करता हूँ कि यह अपने पारिवारिक दायित्वों और साहित्य सृजन कार्य में सामंजस्य रखते हुए जीवन में सफलता के नित नए आयाम स्थापित करें।

शुभ कामनाओं सहित।

ओंकार सिंह विवेक
ग़ज़लकार तथा समीक्षक
रामपुर-उ0प्र0
दिनाँक 24 अक्टूबर,2021

      

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