ये तभी पलकों पर आकर बैठते हैं जब इन्हें ख़ुशी या ग़म की तरफ़
से कोई निमंत्रण मिलता है।कहने का तात्पर्य यह है कि आदमी की आँखों में आँसू या तो किसी ग़म के कारण आते हैं या फिर बहुत अधिक ख़ुश होने पर। इसी ख़याल को लेकर एक मतला हुआ और फिर कुछ शेर भी हो गए जो आप सबकी अदालत में हाज़िर
कर रहा हूँ--
ग़ज़ल-- ©️ ओंकार सिंह विवेक
मोबाइल 9897214710
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रंज - ख़ुशी के दावतनामे जाते हैं,
यूँ ही कब पलकों तक आँसू आते हैं।
कैसे कह दें उनको रागों का ज्ञाता,
रात ढले तक राग यमन जो गाते हैं।
वक़्त की गर्दिश करती है जो ज़ख़्म अता,
वक़्त की रहमत से वो भर भी जाते हैं।
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शुक्र अदा करना तो बनता है इनका,
हम जंगल - नदियों से जितना पाते हैं।
उनका क्या लेना - देना सच्चाई से,
वो तो केवल अफ़वाहें फैलाते हैं।
फैट-शुगर बढ़ने का ख़तरा क्या होगा,
हम निर्धन तो रूखी-सूखी खाते हैं।
--- ©️ ओंकार सिंह विवेक
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(१८-११-२०२१) को
' भगवान थे !'(चर्चा अंक-४२५२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आदरणीया शुक्रगुज़ार हूँ आपका🙏🙏
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 18 नवंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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जी, बेहद शुक्रिया।
Deleteबहुत ही उम्दा रचना हर एक पंक्ति सराहनीय है!
ReplyDeleteआभार आदरणीय
Deleteशानदार ग़ज़ल ।
ReplyDeleteहर शेर लाजवाब।
हार्दिक आभार आपका🙏🙏
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