आज काफ़ी दिन बाद किसी आवश्यक कार्य से रामपुर-उ0प्र0 से गुरुग्राम-हरियाणा जाते समय कुछ दोहे सृजित हुए जो आपके साथ साझा करने का मन हुआ--
🌷कुछ दोहे🌷
----©️ ओंकार सिंह विवेक
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मँहगाई को देख कर , जेबें हुईं उदास,
पर्वों का जाता रहा, अब सारा उल्लास।
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कोई सुनता ही नहीं , उसकी यहाँ पुकार,
चीख-चीख कर रात-दिन, मौन गया है हार।
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हाँ यह सच है इन दिनों ,बिगड़ी है हर बात,
लेकिन बहुरेंगे कभी , अपने भी दिन-रात।
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मिली कँगूरों को सखे,तभी बड़ी पहिचान,
दिया नीव की ईंट ने,जब अपना बलिदान।
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---- ©️ ओंकार सिंह विवेक
बेहतरीन दोहे! वाह वाह!💐💐
ReplyDeleteशुक्रिया माहिर साहब
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